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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् है। इस सूत्र से इस सकारादि स्य' प्रत्यय को इडागम नहीं होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-कर्तिष्यति।
(२) अकय॑त् । यहां पूर्वोक्त कृती' धातु से 'लिनिमित्ते लुङ् क्रियातिपत्तौ (३।३।१३९) से लङ् प्रत्यय है। पूर्ववत् स्य' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इस सकारादि स्य' प्रत्यय को इडागम नहीं होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-अकर्तिष्यत् ।
(३) चिकृत्सति । यहां पूर्वोक्त कृती' धातु से 'धातो: कर्मण: समानकर्तृकादिच्छायां वा' (३।११७) से इच्छार्थ में सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस सकारादि प्रत्यय को इडागम नहीं होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-चिकर्तिषति ।
(४) चय॑ति । ती हिंसासंग्रन्थनयो:' (तु०प०) पूर्ववत् । (५) छर्त्यति। उच्छृदिर् दीप्तिदेवनयो:' (रु०3०) पूर्ववत् । (६) तय॑ति । उतृदिर हिंसादानयोः' (रु०उ०) पूर्ववत् ।
(७) नर्व्यति। नृती गात्रविक्षेपे' (तु०प०) पूर्ववत् । इडागमः
(२४) गमेरिट् परस्मैपदेषु ।५८ । प०वि०-गमे: ५।१ इट् ११ परस्मैपदेषु ७।३ । अनु० -अङ्गस्य, आर्धधातुकस्य, से इति चानुवर्तते । अन्वय:-गमेरङ्गात् सस्यार्धधातुकस्य परस्मैपदेषु इट् ।
अर्थ:-गमेरङ्गाद् उत्तरस्य सकारादेरार्धधातुकस्य परस्मैपदेषु परत इडागमो भवति।
उदा०-गमिष्यति। अगमिष्यत् । जिगमिषति।
आर्यभाषा: अर्थ-(गमे:) गमि इस (अङ्गात्) अङ्ग से परे (सस्य) सकारादि (आर्धधातुकस्य) आर्धधातुक प्रत्यय को (परस्मैपदेषु) परस्मैपद-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (इट) इडागम होता है।
उदा०-गमिष्यति। वह जायेगा। अगमिष्यत् । यदि वह जाता। जिगमिष्यति। वह जाना चाहता है।
सिद्धि- (१) गमिष्यति । यहां 'गम्तृ गतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् 'लूट' और 'स्य' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस सकारादि स्य' प्रत्यय को इडागम होता है।
(२) आमिष्यत् । यहां पूर्वोक्त गस्तृ' धातु से पूर्ववत् तृङ्' प्रत्यय है। (३) बिगमिषति। यहां पूर्वोक्त 'गम्तृ' धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है।
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