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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
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तकार को धकार, धकार को टवर्ग ढकार और पूर्ववर्ती ढकार का लोप होता है। इस सूत्र से इडागम का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-द्रोहिता ।
(६) मोग्धा । 'मुह वैचित्ये' (दि०प०) धातु से सब कार्य पूर्ववत् है । (७) स्नोग्धा । ष्णुह उद्गिरणे' ( दि०प०) धातु से सब कार्य पूर्ववत् है । (८) स्नेग्धा । 'ष्णिह प्रीतो ( दि०प०) धातु से सब कार्य पूर्ववत् है । इडागम-विकल्पः
( १२ ) निरः कुषः । ४६।
प०वि० - निर: ५ ।१ कुष: ५ । १
अनु० - अङ्गस्य, आर्धधातुकस्य इट् वलादेः, वा इति चानुवर्तते । अन्वयः - निरः कुषोऽङ्गाद् वलादेरार्धधातुकस्य वा इट् । अर्थः-निरः पूर्वात् कुषोऽङ्गाद् उत्तरस्य वलादेरार्धधातुकस्य विकल्पेन इगमो भवति ।
उदा०-निष्कोष्टा, निष्कोषिता । निष्कोष्टुम्, निष्कोषितुम् । निष्कोष्टव्यम्, निष्कोषितव्यम् ।
आर्यभाषाः अर्थ- (निर: ) निर्-उपसर्गपूर्वक (कुषः) कुष् इस (अङ्गात्) अङ्ग से परे (वलादेः) वलादि (आर्धधातुकस्य) आर्धधातुक प्रत्यय को (वा) विकल्प से (इट) इडागम होता है ।
उदा०-निष्कोष्टा, निष्कोषिता । तलवार आदि को खैंचकर बाहर निकालनेवाला । निष्कोष्टुम्, निष्कोषतुम् | बाहर निकालने के लिये । निष्कोष्टव्यम्, निष्कोषितव्यम् । बाहर निकालना चाहिये ।
सिद्धि - (१) निष्कोष्टा । यहां निर्-उपसर्गपूर्वक 'कुष् निष्कर्षे' (क्रया०प०) धातु से 'च' (३ 1१1१३३) से 'तृच्' प्रत्यय है । निर्' के रेफ को खरवसानयोर्विसर्जनीयः' ( ८1३1३५ ) से विसर्जनीय की अनुवृत्ति में 'इदुदुपधस्य चाप्रत्ययस्य' ( ८1३।४१) से विसर्जनीय के षत्व होता है। इस सूत्र से इडागम का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में इstaम है - निकोषिता ।
(२) निष्कोष्टुम् । यहां निर्-उपसर्गपूर्वक 'कुष्' धातु से तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्' (३1३ 1१०) से तुमुन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(३) निष्कोष्टव्यम् । यहां निर् उपसर्गपूर्वक 'कुष्' धातु से 'तव्यत्तव्यानीयरः ' (३।१।९६) से 'तव्यत्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
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