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________________ १३६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (९) शास्ता। यहां शासु अनुशिष्टौं' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् तृच्’ प्रत्यय है। इडागम का अभाव निपातित है। (१०) तरुता। यहां तृ प्लवनसन्तरणयोः' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। उट्-आगम निपातित है। (११) तरूता। यहां पूर्वोक्त तृ' धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। ऊट-आगम निपातित है। (१२) वरुता । यहां वृङ् सम्भक्तौ (क्रया०आ०) तथा व वरणे (स्वा० उ०) धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। उट्-आगम निपातित है। .. (१३) वरूता। यहां पूर्वोक्त वृङ् और वृञ् धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। ऊट-आगम निपातित है। (१४) वरूत्री। यहां वस्तृ' शब्द से स्त्रीत्व-विवक्षा में ऋन्नेभ्यो डीप' (३।११६८) 'डी' प्रत्यय है। (१५) उज्ज्वलिति । यहां उत्-उपसर्गपूर्वक ज्वल दीपौ' (भ्वा०प०) धातु से लट्' प्रत्यय और 'कर्तरि शप' (३।१४६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय है। यहां 'शप' के स्थान में इकारादेश निपातित है। अथवा-शप का लुक और तिप्' को इडागम निपातित है। (१६) क्षरिति । 'क्षर सञ्चलने (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (१७) क्षमिति । 'क्षभूष सहने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत्। (१८) वमिति । 'टुवम् उगिरणे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (१९) अमिति । 'अम गत्यादिषु' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । ।। इति इट्प्रतिषेधप्रकरणम् ।। इडागमप्रकरणम् इडागमः (१) आर्धधातुकस्येड्वलादेः ।३५। प०वि०-आर्धधातुकस्य ६।१ इट् ११ वलादे: ६।१ । स०-वल् आदिर्यस्य स वलादिः, तस्य-वलादे: (बहुव्रीहिः)। अनु०-अङ्गस्य इत्यनुवर्तते। 'छन्दसि' इति च निवृत्तम् । अन्वय:-अङ्गाद् वलादेरार्धधातुकस्य इट् । अर्थ:-अङ्गाद् उत्तरस्य बलादेरार्धधातुकस्य इडागमो भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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