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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः (१४) वरूत्री:-वरूत्रीष्ट्वा देवीविश्वदेव्यावती: (यजु० ११ ॥६१) । (१५) उज्ज्वलिति-अग्निरुज्ज्वलिति । उज्ज्वलतीति भाषायाम्। (१६) क्षरिति-स्तोकं क्षरिति । क्षरतीति भाषायाम्। (१७) क्षमिति-स्तोमं क्षमिति । क्षमतीति भाषायाम्। (१८) वमिति-य: सोमं वमिति । वमतीति भाषायाम् । (१९) अमिति-अभ्यमिति वरुणः । अभ्यमतीति भाषायाम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेद-विषय में (ग्रसित०) ग्रसित, स्कभित, स्तभित, उत्तभित, चत्त, विकस्त, विशस्ता, शंस्ता, शास्ता, तरुता, तरूता, वरुता, वरूता, वरूत्री, उज्ज्वलिति, क्षरिति क्षमिति, वमिति, अमिति ये शब्द निपातित हैं।
उदा०-उदाहरण संस्कृत-भाग में देख लेवें।
सिद्धि-(१) ग्रसित: । ग्रस्+क्त । ग्रस्+त । ग्रस्+इद+त। ग्रस्+इ+त । ग्रसित+सु। ग्रसितः।
यहां 'अस अदने' (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। 'ग्रसु' धातु के उदित् होने से उदितो वा' (७।२।५६) से क्त्वा' प्रत्यय का विकल्प से इडागम का विधान किया गया है, अत: 'यस्य विभाषा' (७।२।१५) से निष्ठा में इडागम का प्रतिषेध प्राप्त था, इसलिये इस सूत्र से यहां इडागम का निपातन किया गया है।
(२) स्कभितः । यहां 'स्कम्भु स्तम्भे' (सौत्रधातु) से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। 'अनिदितां हल उपधाया: क्डिति' (६।४।२४) से अनुनासिक (न्) का लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) स्तभित: । 'स्तम्भु निष्कोषणे' (सौत्रधातु) से पूर्ववत् ।
(४) उत्तभितः । यहां उत्-उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त स्तम्भु' धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। उद: स्थास्तम्भोः पूर्वस्य' (८।४।६१) से पूर्व सवर्ण आदेश होता है-उत्+स्तभितः । उत्+तभित: उत्तभितः । शेष कार्य पूर्ववत् है।
(५) चत्त: । यहां चते याचने (भ्वा०प०) से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है।
(६) विकस्त: । यहां वि-उपसर्गपूर्वक 'कस गतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है।
(७) विशस्ता । यहां वि-उपसर्गपूर्वक 'शसु हिंसायाम्' (भ्वा०प०) धातु से 'वुल्तृचौ' (३।१।१३३) से तृच्' प्रत्यय है। इडागम का अभाव निपातित है।
(८) शंस्ता। यहां 'शंसु स्तुतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। इडागम का अभाव निपातित है।
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