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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १३१ प्रत्यय को इडागम का प्रतिषेध प्राप्त था। इस सूत्र से विकल्प से इडागम का विधान किया गया है। विशेष: लोम और केश शब्दों के पृथक्-पृथक् अर्थ हैं किन्तु यहां लोम और केश दोनों का सामान्य रूप से ग्रहण किया गया है। निपातनम् (२३) अपचितश्च ।३०। प०वि०-अपचित: ११ च अव्ययपदम् । अनु०-अङ्गस्य, न, इट्, निष्ठायाम्, वा इति चानुवर्तते । अन्वय:-अपचितश्च वा निपातनम्। अर्थ:-अपचित इति च विकल्पेन निपात्यते, अर्थात् अपपूर्वाच्चायतेरड्गाद् उत्तरस्या निष्ठाया विकल्पेन इडभावोऽङ्गस्य च चिभावो निपात्यते। उदा०-अपचितोऽनेन गुरु:, अपचायितोऽनेन गुरुः । आर्यभाषा: अर्थ-(अपचित:) अपचित यह शब्द (वा) विकल्प से निपातित है अर्थात् अप-उपसर्गपूर्वक चाय इस (अङ्गात्) अङ्ग से परे (निष्ठायाः) निष्ठा-संज्ञक प्रत्यय को (वा) विकल्प से (इड् न) इडागम का अभाव और अग को चि-आदेश निपातित है। उदा०-अपचितोऽनेन गुरु:, अपचायितोऽनेन गुरुः । इसने गुरु का सम्मान किया। सिद्धि-अपचितः । अप+चाय्+क्त । अप+चाय्+त। अप+चि+त। अपचित+सु । अपचितः। यहां अप-उपसर्गपूर्वक चाय पूजानिशामनयो:' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से निष्ठा-प्रत्यय को इडागम का अभाव और 'च' आदेश नहीं है-अपचायित:। हु-आदेशः (२४) हु हरेश्छन्दसि।३१। प०वि०-हु १।१ (सु-लुक्) हरे: ६१ छन्दसि ७।१ । अनु०-अङ्गस्य, निष्ठायामिति चानुवर्तते । अन्वयः-छन्दसि हरेरङ्गस्य निष्ठायां हुः। । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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