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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
आङ्पूर्वक 'स्वन' धातु को मन- अर्थ में भी इसी सूत्र से विकल्प से इडागम होता है-अस्वान्तं मनः, आस्वानितं मनः । 'क्षुब्धस्वान्तध्वान्त०' (७।२।१८) से मन- अर्थ में जो इडागम का प्रतिषेध निपातित है उसका यह बाधक है अर्थात् आङ्पूर्वक स्वन' धातु से मन- अर्थ में भी निष्ठा को विकल्प से इडागम होता है - आस्वान्तं मनः । आस्वनितं मनः ।
इडागम-विकल्पः
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(२२) हृषेर्लोमसु । २६ ।
प०वि०-हृषेः ५।१। लोमसु ७।१।
अनु०-अङ्गस्य, न, इट्, निष्ठायाम्, वा इति चानुवर्तते । अन्वयः - लोमसु हृषेरङ्गाद् निष्ठाया वा इड् न । अर्थ:-लोमसु वर्तमानाद् हृषेरङ्गाद् उत्तरस्या निष्ठाया विकल्पेन इडागमो न भवति ।
उदा० - हृष्टानि लोमानि हृषितानि लोमानि । हृष्टं लोमभि:, हृषितं लोमभिः। हृष्टाः केशाः, हृषिताः केशाः । हृष्टं कैशैः । हृषितं केशैः ।
आर्यभाषाः अर्थ-(लोमसु) लोम=केश विषय में विद्यमान (हृषेः) हृषि इस (अङ्गात्) अङ्ग से परे (निष्ठायाः ) निष्ठा - संज्ञक प्रत्यय को (वा) विकल्प से (इट्) इडागम (न) नहीं होता है ।
उदा०-हृष्टानि लोमानि, हृषितानि लोमानि । उत्स्फुटित (खड़े हुये ) लोम (कर्तृवाच्य ) । हृष्टं लोमभि:, हृषितं लोमभिः । लोमों के द्वारा उत्स्फुटित होना (भाववाच्य ) । हृष्टाः केशा:, हृषिताः केशाः । अर्थ पूर्ववत् है ( कर्तृवाच्य ) । हृष्टं कैशैः । हृषितं केशैः । अर्थ पूर्ववत् है (भाववाच्य) ।
सिद्धि - हृष्टानि लोमानि । यहां 'हृषु अलीके' (भ्वा०प०) अथवा 'हृष तुष्टों (दि०प०) धातु से 'गत्यर्थाकर्मक०' (३।४।७२ ) से कर्ता अर्थ में 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से लोम-विषय में इडागम का प्रतिषेध होता है। 'ष्टुना ष्टुः' (८ ।४ । ४१) से तकार को टवर्ग टकार होता है। विकल्प पक्ष में इडागम है- हृषितानि लोमानि ।
'हृष्टं लोमभि:, हर्षितं लोमभि:' यहां 'नपुंसके भावे क्तः' (३ । ३ । ११४) से भाव- अर्थ में 'क्त' प्रत्यय है। अत: 'कर्तृकरणयोस्तृतीया' (२ । ३ । १८) से कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है।
'हृषु' धातु के उदित होने से 'उदितो वा' (७/२/५६ ) से 'क्वा' प्रत्यय को विकल्प से इडागम का विधान किया गया है। अत: 'यस्य विभाषा' (७/२1१५ ) से निष्ठा
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