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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
१०६ यहां इस औणादिक त' प्रत्यय का ही ग्रहण किया जाता है; 'क्त' प्रत्यय का नहीं। क्त' प्रत्यय करने पर-'हसितम्' यह शब्दरूप बनता है।
(६) कुष्ठम् । कुष्+क्थन् । कुष्+थ। कुष्ठ+सु। कुष्ठम्।
यहां कुष निष्कर्षे' (क्रया०उ०) धातु से 'हनिकुषिनीरमिकाशिभ्य: क्थन्' (उणा० २।२) से 'क्थन्' प्रत्यय है। 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४१) से धकार को टवर्ग ठकार होता है। ऐसे ही काश दीप्तौ' (दि०आ०) धातु से-काष्ठम्।
(७) कुक्षिः । कुष्+क्ति। कुष्+सि। कुक्+षि। कुक्षि+सु । कुक्षिः।
यहां कुष निष्कर्षे (ऋया०प०) धातु से 'प्लुषिशुचिकुषिभ्य: क्सि:' (उणा० ३ ११५५) से क्सि' प्रत्यय है। षढो: क: सि' (८।२।४१) से षकार को ककार और 'आदेशप्रत्यययो:' (८।३।६०) से षत्व होता है।
(८) इक्षुः । इष्+क्सु। इष्+सु । इक्षु ! इक्षु+सु । इक्षुः ।
यहां 'इषु इच्छायाम्' (भ्वा०प०) धातु से इषे: क्सुः' (उणा० ३।१५७) से क्सु' प्रत्यय है। पूर्ववत् षकार को ककार और षत्व होता है।
(९) अक्षरम् । अश्+सरन्। अश्+सर। अष्+सर । अक्+पर। अक्षर+सु । अक्षरम्।
यहां 'अशूङ व्याप्तौ' (रुधा०आ०) धातु से 'अशे: सरन्' (उणा० ३ १७०) से 'सरन्' प्रत्यय है। वश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से शकार को षकार, षढो: क: सि' (८।२।४१) से षकार को ककार और पूर्ववत् षत्व होता है।
(१०) शल्कः । शल्+कन् । शल्+क। शल्क+सु । शल्कः ।
यहां शल गतौ' (भ्वा०प०) धातु से इण्मीकापाशल्यतिमर्चिभ्य: कन्' (उणा० ३।४३) से कन्' प्रत्यय है।
(११) वत्स: । वद्+स। वत्+स। वत्स+सु। वत्सः ।
यहां वद व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से वृतवदिहनिक्रमिकषियुमुचिभ्य: सः' (उणा० ३ १६२) से स' प्रत्यय है। 'खरि च' (८।४।५५) से दकार को चर् तकार होता है। इट्-प्रतिषेधः
(३) एकाच उपदेशेऽनुदात्तात्।१०। प०वि०-एकाच: ५।१ उपदेशे ७।१ अनुदात्तात् ५।१।
स०-एकोऽज् यस्मिन् स एकाच, तस्मात्-एकाच: (बहुव्रीहि:)। न विद्यते उदात्तो यस्मिन् स:-अनुदात्त:, तस्मात् अनुदात्तात् (बहुव्रीहि:)।
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