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कृत्प्रत्ययाः
(६) सि: (क्सि : )
(७) सर : (क्सरन्)
(८) कः (कन्)
(९) स:
पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
शब्दरूपम्
कुक्षि:
इक्षुः
वर्ण ।
छिलका ।
बछड़ा ।
आर्यभाषाः अर्थ-(अङ्गात्) अङ्ग से परे (कृताम् ) कृत्-संज्ञक (ति。सानाम्) ति, तु, त्र, त, थ, सि, सु, सर, क, स इन प्रत्ययों को (च) भी (इट) इडागम (न) नहीं होता है।
अक्षरम्
शल्क:
वत्सः
भाषार्थ:
कोख ।
ईंख ।
1
उदा० - उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है, सिद्धि - (१) तन्तिः । तन्+क्तिच् । तन्+ति । तन्ति + सु । तन्तिः ।
यहां 'तनु विस्तारे' (तना० उ० ) धातु से 'क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्' (३ |३ | १७४) से कृत्संज्ञक क्तिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे इडागम का प्रतिषेध होता है। 'अनुदात्तोपदेशवनतितनोति०' (६ । ४ । ३७) से अनुनासिक (न्) का लोप और 'अनुनासिकस्य क्विझलो: क्ङिति (६।४।१५) से दीर्घ प्राप्त है, किन्तु न क्तिचि दीर्घश्च' (६ । ४ । ३९ ) उनका प्रतिषेध हो जाता है।
(२) दीप्ति: । दीप्+क्तिन् । दीप्+ति । दीप्ति + सु । दीप्ति: ।
यहां 'दीपी दीप्तौं' (दि०आ०) धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' ( ३ | ३ |९४ ) से क्तिन्' प्रत्यय है।
(३) सक्तुः । सच्+तुन्। सच्+तु । सक्+तु। सक्तु+सु । सक्तुः । यहां 'षच समवायें' (भ्वा०आ०) धातु से 'सितनिगमिमसिसच्यविधाक्रुशिभ्यस्तुन्' ( उणा० १।६९) से 'तुन्' प्रत्यय है। 'चोः कुः' (८/२/३०) से चकार को कवर्ग ककार
होता है।
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(४) पत्रम् । पत्+ष्ट्रन् । पत्+त्र । पत्र+सु । पत्रम्।
यहां 'पत्लृ गतौं' (स्वा०प०) धातु से 'दाम्नीशस ० ' ( ३/२/८२ ) से 'ष्ट्रन्' प्रत्यय है ।
(५) हस्तः । हस्+तन् । हस्+त । हस्त+सु । हस्तः ।
यहां 'हस हस ' ( वा०प०) धातु से हसिमृग्रिण्वमिदमितमिलूपूधुर्विभ्यस्तन्' (उणा० ३।८६ ) से 'तन्' प्रत्यय है। ऐसे ही 'लूञ् लवने' (क्रया०3०) धातु से-लोत:, पूञ पवने' धातु से - पोतः । धुर्वी गत्यर्थ: (भ्वा०प०) धातु से - धूर्त: ।
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