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________________ १०८ कृत्प्रत्ययाः (६) सि: (क्सि : ) (७) सर : (क्सरन्) (८) कः (कन्) (९) स: पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् शब्दरूपम् कुक्षि: इक्षुः वर्ण । छिलका । बछड़ा । आर्यभाषाः अर्थ-(अङ्गात्) अङ्ग से परे (कृताम् ) कृत्-संज्ञक (ति。सानाम्) ति, तु, त्र, त, थ, सि, सु, सर, क, स इन प्रत्ययों को (च) भी (इट) इडागम (न) नहीं होता है। अक्षरम् शल्क: वत्सः भाषार्थ: कोख । ईंख । 1 उदा० - उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है, सिद्धि - (१) तन्तिः । तन्+क्तिच् । तन्+ति । तन्ति + सु । तन्तिः । यहां 'तनु विस्तारे' (तना० उ० ) धातु से 'क्तिच्क्तौ च संज्ञायाम्' (३ |३ | १७४) से कृत्संज्ञक क्तिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे इडागम का प्रतिषेध होता है। 'अनुदात्तोपदेशवनतितनोति०' (६ । ४ । ३७) से अनुनासिक (न्) का लोप और 'अनुनासिकस्य क्विझलो: क्ङिति (६।४।१५) से दीर्घ प्राप्त है, किन्तु न क्तिचि दीर्घश्च' (६ । ४ । ३९ ) उनका प्रतिषेध हो जाता है। (२) दीप्ति: । दीप्+क्तिन् । दीप्+ति । दीप्ति + सु । दीप्ति: । यहां 'दीपी दीप्तौं' (दि०आ०) धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' ( ३ | ३ |९४ ) से क्तिन्' प्रत्यय है। (३) सक्तुः । सच्+तुन्। सच्+तु । सक्+तु। सक्तु+सु । सक्तुः । यहां 'षच समवायें' (भ्वा०आ०) धातु से 'सितनिगमिमसिसच्यविधाक्रुशिभ्यस्तुन्' ( उणा० १।६९) से 'तुन्' प्रत्यय है। 'चोः कुः' (८/२/३०) से चकार को कवर्ग ककार होता है। Jain Education International (४) पत्रम् । पत्+ष्ट्रन् । पत्+त्र । पत्र+सु । पत्रम्। यहां 'पत्लृ गतौं' (स्वा०प०) धातु से 'दाम्नीशस ० ' ( ३/२/८२ ) से 'ष्ट्रन्' प्रत्यय है । (५) हस्तः । हस्+तन् । हस्+त । हस्त+सु । हस्तः । यहां 'हस हस ' ( वा०प०) धातु से हसिमृग्रिण्वमिदमितमिलूपूधुर्विभ्यस्तन्' (उणा० ३।८६ ) से 'तन्' प्रत्यय है। ऐसे ही 'लूञ् लवने' (क्रया०3०) धातु से-लोत:, पूञ पवने' धातु से - पोतः । धुर्वी गत्यर्थ: (भ्वा०प०) धातु से - धूर्त: । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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