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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः विशेष: यहां सिचि वृद्धि: परस्मैपदेषु' (७।२।१) से नित्य वृद्धि प्राप्त थी। अत: विभाषा-वचन से नकार से उसका प्रतिषेध होकर वा' से विकल्प होता है, क्योंकि 'नवेति विभाषा' (११।४४) से निषेध और विकल्प की विभाषा संज्ञा की गई है। विभाषा न भवति-विकल्प से वृद्धि होती है। वृद्धि-विकल्प:
__(७) अतो हलादेर्लघोः ७। प०वि०-अत: ६१ हलादे: ६१ लघो: ६।१। स०-हल् आदिर्यस्य स हलादि:, तस्य-हलादे: (बहुव्रीहि:)।
अनु०-अङ्गस्य, सिचि, वृद्धि:, परस्मैपदेषु, न, इटि, विभाषा इति चानुवर्तते।
अन्वय:-हलादेरङ्गस्य लघोरत: परस्मैपदेषु इटि सिचि विभाषा वृद्धिर्न।
अर्थ:-हलादेरङ्गस्य लघोरकारस्य स्थाने परस्मैपदपरके इडादौ सिचि परतो विकल्पेन वृद्धिर्न भवति।
उदा०-(कण) अकणीत्, अकाणीत् । (रण) अरणीत्, अराणीत् ।
आर्यभाषाअर्थ-(हलादे:) हल् जिसके आदि में है उस (अङ्गस्य) अङ्ग के (लघो:) ह्रस्व (अत:) अकार के स्थान में (परस्मैपदेषु) परस्मैपदपरक (इटि) इडादि (सिचि) सिच् प्रत्यय परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (वृद्धि:) वृद्धि (न) नहीं होती है।
उदा०-(कण) अकणीत्, अकाणीत् । वह रोया, समीप गया, छोटा हुआ। (रण) अरणीत्, अराणीत् । उसने आवाज की/वह गया।
सिद्धि-अकणीत । यहां कण शब्दार्थ:' (भ्वा०प०) कण गतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लुङ्' और सिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से हलादि कण्' धातु के लघु अकार को रस्मैपदपरक, इडादि सिच् प्रत्यय परे होने पर वृद्धि नहीं होती है। विकल्प पक्ष में वदव्रजहलन्तस्याच:' (७।२।३) से वृद्धि होती है-अकाणीत् ।
ऐसे ही 'रण शब्दार्थ:' (भ्वा०प०) 'रण गतौ' (भ्वा०प०) धातु से-अरणीत्, अराणीत्।
यहां लघु-अकार का कथन इसलिये किया है कि यहां वृद्धि न हो-अतक्षीत्, अरक्षीत् । यहां तक्ष तनूकरणे' और 'रक्ष पालने' (भ्वा०प०) इन धातुओं में संयोगे गुरु' (१।४।११) से अकार गुरु है, लघु नहीं है।
।। इति वृद्धि-प्रकरणम् ।।
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