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________________ ७८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् एकाल्प्रत्यय:' (१।३।४१) से एकाल् प्रत्यय की अपृक्त संज्ञा है। अत: 'सु' का उपदेशेऽजनुनासिक इत्' (१।३।२) से इत् होकर अपृक्त स्' का लोप होता है। ऐसे ही-तक्षा, उखास्रत्, पर्णध्वत् । (२) कुमारी । कुमारी+सु । कुमारी+स् । कुमारी+० । कुमारी। यहां प्रथम 'कुमार' शब्द से वयसि प्रथमें (४।१।२०) से स्त्रीलिङ्ग में डीप प्रत्यय है। इस सूत्र से डी-अन्त 'कुमारी' शब्द से अपक्तसंज्ञक सु' प्रत्यय का लोप होता है। (३) गौरी । यहां 'गौर' शब्द से षिद्गौरादिभ्यश्च' (४।१।४१) से स्त्रीलिङ्ग में डीष् प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (४) शाङ्गरवी। यहां शारिव' शब्द से 'शाङ्गरवाद्यञो डीन्' (४।१।७३) से स्त्रीलिङ्ग में 'डीन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (५) खट्वा । खट्वा+सु। खट्वा+स् । खट्वा+० । खट्वा । यहां 'खट्व' शब्द से 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में टाप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से आबन्त 'खट्वा' शब्द से अपृक्तसंज्ञक 'सु' प्रत्यय का लोप होता है। (६) बहुराजा । यहां बहुराजन्' शब्द से डाबुभाभ्यामन्यतरस्याम् (४।१।११३) से 'डाप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (७) कारीषगन्ध्या। यहां कारीषगन्ध्य' शब्द से 'यङश्चाप्' (४।१।७४) से स्त्रीलिङ्ग में चाप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (८) अबिभः । भृ+लङ्। अट्+भृ+तिम्। अ+भृ+शप्+ति। अ+भृ+o+ति । अ+भ् इर्-भृ+त् । अ+ब् इ भ+त् । अ-बि+भर+० । अबिभः । यहां डुभृन धारणपोषणयो:' (जु०उ०) धातु से लङ् प्रत्यय है। तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में तिप् आदेश, कर्तरि शप' (३।१।६८) से शप्-विकरण प्रत्यय और जुहोत्यादिभ्य: श्लुः' (२।४।७५) से शप् को श्लु (लोप) होता है। श्लौं' (६।१।१०) से 'भृ' धातु को द्वित्व, 'भृञामित्' (७।४।७५) से 'भृ' धातु के अभ्यास को इकार आदेश और वह उरण रपरः' (१1१।५०) से रपर होता है। 'अभ्यासे चर्च (८।४।५३) से अभ्यास भकार को जश् वकार आदेश होता है। सार्वधातुकार्धधात्कयोः' (७।३।८४) से 'भू' को गुण 'अ' और उसे पूर्ववत् रपर 'अर' होता है। इस सूत्र से अपक्तसंज्ञक ति-प्रत्यय (त्) का लोप होता है। खरवासनयोर्विसर्जनीय:' (८।३।१५ ) से रेफ को विसर्जनीय आदेश होता है। ऐसे ही जागृ निद्राक्षये' (अदा०प०) धातु से-अजागः । (९) अभिनः । भि. । अट् +भिद्+सिप् । अ+अभि इनम् द्+सि । अ+भि न द-स् । अ+भिनद्+ स। अभिन+० । अभिनर् । अभिनः ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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