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________________ ५८ आकारादेश-विकल्पः पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् योगद्वन्द्वः) । प०वि०-चि-स्फुरो: ६।२ णौ ७।१ । स० - चिश्च स्फुर् च तौ चिस्फुरौ तयो: - चिस्फुरो: ( इतरेतर - (१०) चिस्फुरोर्णौ । ५४ । भवति । अनु०-धातो:, आत्, एच:, विभाषा इति चानुवर्तते । अन्वयः-णौ चिस्फुरोर्धात्वोरेचो विभाषा आत् । अर्थ:-णौ प्रत्यये परतश्चिस्फुरोर्धात्वोरेच: स्थाने विकल्पेनाकारादेशो उदा०-(चिः) चापयति, चाययति । (स्फुर्) स्फारयति, स्फोरयति । आर्यभाषाः अर्थ- (णौ) णिच् प्रत्यय परे होने पर (चिस्फुरो:) चि और स्फुर् (धातोः) धातुओं के (एच) एच् के स्थान में (विभाषा) विकल्प से (आत्) आकार आदेश होता है। उदा०-1 - (चि) चापयति, चाययति । चयन कराता है । (स्फुर् ) स्फारयति, स्फोरयति । सुझाता है । सिद्धि-(१) चापयति । चि+ णिच् । चै+ इ । चा+ इ । चा+पुक् + इ । चापि+लट् । चापयति । यहां 'चिञ् चयने' (स्वा० उ० ) धातु से हेतुमति च' (३ | १ | २६ ) से णिच् प्रत्यय है। 'अचो ञ्णिति' (७/२ । ११५ ) से 'चि' को 'चै' वृद्धि होती है। इस सूत्र से 'चि' धातु के एच् (ऐ) के स्थान में आकार आदेश होता है । 'अर्तिही०' (७/३/३६ ) से उसे पुक् आगम होकर 'चापि' धातु से 'लट्' प्रत्यय है । (२) चाययति। यहां णिच् प्रत्यय परे होने पर 'चि' धातु के 'एच' को इस सूत्र से विकल्प पक्ष में आकार आदेश नहीं है। अत: 'चायि' धातु से लट् प्रत्यय है। (३) स्फारयति। स्फुर्+णिच् । स्फोर्+इ। स्फार्+इ। स्फारि+लट् । स्फारयति। यहां 'स्फुर स्फुरणे' (तु०प०) धातु से पूर्ववत् णिच् प्रत्यय है । पुगन्तलघूपधस्य च' (७/३/८६ ) से 'स्फुर्' को 'स्फोर्' गुण होता है। इस सूत्र से 'स्फुर्' के 'एच' (ओ) को आकार आदेश होता है. तत्पश्चात् 'स्फारि' धातु से लट् प्रत्यय है । (४) स्फोरयति । यहां इस सूत्र से विकल्प पक्ष में स्फुर्' धातु के एच् (ओ) को आकार आदेश नहीं है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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