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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
(ख) अजातौ। अर्थ-(ब्राह्मः) ब्राह्म इस शब्द में (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग का (अपत्ये) अपत्य अर्थ में (अणि) अण्-प्रत्यय परे होने पर (अजातौ) जातिविषय में टिलोप नहीं होता है। ब्राह्मणः । ब्रह्मा का पुत्र ।
सिद्धि-(१) ब्राह्मः । ब्रह्मन्+अण् । ब्राह्मन्+अ। ब्राह्म+सु। ब्राह्मः ।
यहां ब्रह्मन्' शब्द से तस्येदम् (४।३।१२०) से इदम्-अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। इस 'अण्' प्रत्यय के परे होने पर ब्रह्मन्' शब्द का टिलोप (अन्) निपातित है। यहां 'अन्' (६।४।१६७) से प्रकृतिभाव प्राप्त था।
(२) ब्राह्मणः । ब्रह्मन्+अण् । ब्राह्मन्+अ। ब्राह्मण+सु । ब्राह्मणः । ___ यहां ब्रह्मन्' शब्द से तस्यापत्यम् (६।१।९२) से अपत्य-अर्थ में 'अण्' प्रत्यय है। इस 'अण' प्रत्यय के परे होने पर अपत्यार्थक जाति में टि-लोप नहीं होता है, अपित 'अन् (६।४।१६७) से प्रकृतिभाव होता है। 'अजातौ' यहां पर्युदास प्रतिषेध से जाति में टि-लोप नहीं होता है। निपातनम्
(४४) कार्मस्ताच्छील्ये।१७२। प०वि०-कार्म: ११ ताच्छील्ये ७।१। अनु०-अङ्गस्य, भस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-कार्मो भस्य अङ्गस्य ताच्छील्ये णे टिलोपः।
अर्थ:-कार्म इत्यत्र भसंज्ञकस्य अङ्गस्य ताच्छील्येऽर्थे णे प्रत्यये परतष्टिलोपो निपात्यते।
उदा०-कर्मशीलमस्य इति कार्मः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(कार्म:) कार्म इस शब्द में (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग का (ताच्छील्ये) शील-अर्थक, ण-प्रत्यय परे होने पर टिलोप निपातित है।
उदा०-कार्म: । कर्मशील। सिद्धि-कार्म: । कर्मन्+ण । कर्मन्+अ । का+अ । कार्म+सु । कार्मः ।
यहां कर्मन्' शब्द 'छत्रादिभ्यो णः' (४।४।६२) से शील-अर्थ में 'ण' प्रत्यय है। इस 'ण' प्रत्यय के परे होने पर इस सूत्र से कर्मन्' शब्द का टि-लोप (अन्) निपातित है, 'अन्' (६।४।१६७) से प्रकृतिभाव प्राप्त था।