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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः દ૬૭ उदा०-(वान्तसंयोगात्) पर्वणा, पर्वणे। अथर्वणा, अथर्वणे। (मान्तसंयोगात्) शर्मणा, शर्मणे। चर्मणा, चर्मणे । आर्यभाषा: अर्थ-(वमन्तात्) वकारान्त और मकारान्त (संयोगात्) संयोग से परवर्ती (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अगसम्बन्धी (अन:) अन् के (अल्लोपः) अकार का लोप (न) नहीं होता है। उदा०-(वकारान्त संयोग) पर्वणा। पर्व केद्वारा। पर्वणे। पर्व केलिये। पर्व= उत्सव (त्यौहार)। अथर्वणा । अथर्वा केद्वारा। अथर्वणे। अथर्वा केलिये। अथर्वा एक ऋषि का नाम। (मकारान्त संयोग) शर्मणा । शर्मा केद्वारा। शर्मणे । शर्मा केलिये। चर्मणा। चर्म=चाम केद्वारा। चर्मणे। चर्म केलिये। सिद्धि-(१) पर्वणा । पर्वन्+टा। पर्वन्+आ। पर्वण+आ। पर्वणा। यह पर्वन्' शब्द से 'टा' प्रत्यय है। 'पर्वन्' शब्द में वकारान्त संयोग () से उत्तर भ-संज्ञक 'अन्' है। इस सूत्र से इस 'अन्' के अकार का लोप नहीं होता है। 'अट्कुप्वाङ्' (८।४।२) से नकार को णकार आदेश होता है। ऐसे ही-पर्वणे (डे)। 'अथर्वन्' शब्द से-अथर्वणा (टा)। अथर्वणे (डे)। (२) शर्मणा । यहां शर्मन्' शब्द से 'टा' प्रत्यय है। 'शर्मन्' शब्द में मकारान्त संयोग (रम्) से उत्तर भ-संज्ञक 'अन्' है। इस सूत्र से इस 'अन्' के अकार का लोप नहीं होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-शर्मणे (डे)। चर्मन्' शब्द से-चर्मणा (टा)। चर्मणे (डे)। अकारलोप: (१०) अचः।१३८। वि०-अच: ६।१। अनु०-अङ्गस्य, भस्य, अल्लोप इति चानुवर्तते । अन्वय:-अचो भस्य अङ्गस्य अल्लोपः। अर्थ:-अच: अञ्चति-अन्तस्य भसंज्ञकस्य अङ्गस्य अकारस्य लोपो भवति। उदा०-त्वं दधीच: पश्य। दधीचा। दधीचे। त्वं मधूच: पश्य । मधूचा । मधूचे। अत्र 'अच:' इति लुप्तनकारोऽञ्चतिर्गृह्यते।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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