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________________ ६७१ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः तु (तर्) धातु के अकार को लिट् (तस्) प्रत्यय परे होने पर एकारादेश और अभ्यास का लोप होता है। ऐसे ही उस्' प्रत्यय परे होने पर-तेरु: । 'थल्' प्रत्यय परे होने पर-तेरिथ। न शसददवादिगुणानाम् (६।४।१२६) से एकारादेश और अभ्यास लोप का प्रतिषेध प्राप्त था, अत: यह विधान किया गया है। (२) फेलतुः। ‘फल निष्पत्तौ' और 'त्रिफला विशरणे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । इस धातु के आदेशादि (प) होने से अत एकहलमध्येऽनादेशादेर्लिटि' (६।४।१२०) से एकारादेश और अभ्यास लोप की प्राप्ति नहीं थी, अत: यह विधान किया गया है। (३) भेजतुः । 'भज सेवायाम्' (भ्वा०उ०) धातु से पूर्ववत्। (४) त्रेपे । त्रप्+लिट् । त्रप्+ल् । त्रप्+त। त्रप्+एश् । त्रप्-त्रप्+ए। ०-त्रेप्+ए। प्+ए। त्रेपे। यहां 'त्रपूष् लज्जायाम्' (भ्वा०आ०) धातु से पूर्ववत् 'लिट्' प्रत्यय है। लिटस्तझयोरेशिरेच्' (३।४।८१) से त' को 'एश्’ आदेश होता है। त्रप्' धातु के एकहल्-मध्यवान् न होने से 'अत एकहलमध्ये०' (६।४।१२०) से एकारादेश और अभ्यासलोप की प्राप्ति नहीं थी, अत: यह विधान किया गया है। 'त्रप्' धातु के आत्मनेपद होने से परस्मैपद के 'थल' प्रत्यय की प्राप्ति नहीं है। एकारादेशः (४८) राधो हिंसायाम् ।१२३। प०वि०-राध: ६।१ हिंसायाम् ७१ । अनु०-अङ्गस्य, क्डिति, एत्, अभ्यासलोप:, च, अत:, लिटि, थलि, च, सेटि इति चानुवर्तते। अन्वय:-हिंसायां राधोऽङ्गस्य अत: क्डिति लिटि सेटि च थलि एत्, अभ्यासलोपश्च। ___ अर्थ:-हिंसायामर्थे वर्तमानस्य राधोऽङ्गस्य अकारस्य किति डिति च लिटि सेटि च थलि प्रत्यये परत एकारादेशो भवति, अभ्यासस्य च लोपो भवति। उदा०-तौ अपरेधतुः। ते अपरेधुः । त्वम् अपरेधिथ। आर्यभाषा: अर्थ-(हिंसायाम्) हिंसा अर्थ में विद्यमान (राध:) राध (अङ्गस्य) अङ्ग के (अत:) अकार को (क्डिति) कित् और डित् (लिटि) लिट् तथा (सेटि) सेट् (थलि) थल् प्रत्यय परे होने पर (च) भी (एत्) एकारादेश होता है (च) और (अभ्यासलोप:) अभ्यास का लोप होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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