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________________ ६६२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- (श्ना:) स लुनीते । तौ लुनीतः । युवां लुनीथः । स पुनीते। तौ पुनीत:। युवां पुनीथ: । (अभ्यस्तम् ) स मिमीते। त्वं मिमीषे। यूयं मिमीध्वे । स सञ्जीहीते। त्वं सञ्जिहीये। यूयं सञ्जिहीध्वे । आर्यभाषा: अर्थ-(अघो:) घु-संज्ञक से भिन्न (श्नाभ्यस्तयोः) श्ना-प्रत्ययान्त और अभ्यस्तसंज्ञक (अङ्गस्य) अगों के (आत:) आकार के स्थान में (हलि) हलादि (सार्वधातुके) सार्वधातुक (क्ङिति) कित् और डित् प्रत्यय परे होने पर (ई.) ईकारादेश होता है। उदा०-(श्ना) स लुनीते । वह काटता है। तौ लुनीत: । वे दोनों काटते हैं। युवां लुनीथः । तुम दोनों काटते हो। स पुनीते । वह पवित्र करता है। तौ पुनीत: । वे दोनों पवित्र करते हैं। युवां पुनीथः । तुम दोनों पवित्र करते हो। (अभ्यस्त) स मिमीते । वह नापता है। त्वं मिमीषे । तू नापता है। यूयं मिमीध्वे । तुम सब नापते हो । स सञ्जीहीते। वह संगति करता है। त्वं सञ्जिहीषे । तू संगति करता है। यूयं सञ्जिहीध्वे । तुम सब संगति करते हो। सिद्धि-(१) लुनीते। लू+लट् । लू+ल। लू+त। लू+श्ना+त। लू+ना+त। लू+न् ई+ते। लुनीते। __ यहां लू छेदने (क्रया उ०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। 'क्रयादिभ्यः श्ना' (३।१।८१) से श्ना' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से श्ना-प्रत्ययान्त (लू+ना) अङ्ग के आकार के स्थान में हलादि, सार्वधातुक, डित् 'त' प्रत्यय परे होने पर ईकारादेश होता है। सार्वधातुकमपित्' (१।२।४) से त' प्रत्यय डिद्वत् होता है। ऐसे ही तस्' और 'थस्' प्रत्यय करने पर-लुनीत:, लुनीथः । (२) पुनीते। 'पून पवने' (क्रयाउ०) धातु से पूर्ववत् । (३) मिमीते। मा+लट् । मा+ल। मा+त। मा+शप्+त । मा+o+त । मा-मा+त। मा-मई+त। मि-मी+ते। मिमीते। यहां 'माङ् माने शब्दे च' (जु०आ०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से 'लट्' प्रत्यय है। 'जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२।४।७५) से 'शप्' को श्लु-आदेश और श्लौ (६।१।१०) से धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से अभ्यस्त-संज्ञक 'मा' धातु के आकार को हलादि, सार्वधातुक डित् 'त' प्रत्यय परे होने पर ईकारादेश होता है। 'भृञामित् (७।४।७६) से अभ्यास को इकारादेश होता है। ऐसे ही 'थास्' और 'ध्वम्' प्रत्यय करने पर-मिमीषे, मिमीध्वे । (४) संजिहीते। सम्-उपसर्गपूर्वक 'ओहाङ् गतौ' (जु०आ०) धातु से पूर्ववत् । ऐसे ही थास् (से) और 'ध्वम्' प्रत्यय करने पर-सञ्जिहीये, सञ्जिहीध्वे ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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