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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ६६१ यहां पूर्वोक्त 'लूञ्' धातु से 'लोट् च' (३ | ३ | १६२ ) से 'लोट्' प्रत्यय है। 'टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से 'अत' के टि-भाग (अ) को एकार आदेश और इसे 'आमेत:' (३।४।९०) से 'आम्' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (३) अलुनत। यहां पूर्वोक्त 'लूञ्' धातु से 'अनद्यतने लङ्' (३ । २ । १११) से में 'लङ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । भूतकाल (४) मिमते । मा+लट् । मा+ल् । मा+झ | मा+शप+झ । मा+०+झ | मा-मा+ 0+अत | मा+म्०+अते । मि+म्+अते । मिमते। से 'झ' के स्थान में यहां 'माङ् माने शब्दे च' (जु०आ०) धातु से 'वर्तमाने 'लट्' प्रत्यय है । 'जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२/४/७५) से 'शप्' को (६ 1१1१०) से धातु को द्वित्व होता है। 'अदभ्यस्तात्' (७/१/४ 'अत' आदेश होता है। इस सूत्र से सार्वधातुक ङित् 'अत' प्रत्यय परे होने पर अभ्यस्त अङ्ग (मा) के आकार का लोप होता है। 'भृञामित्' (७/४/७६ ) से अभ्यास को इकार आदेश होता है। (५) मिमताम् । पूर्वोक्त 'माङ्' धातु से 'लोट् च' (३।३।१६२) से 'लोट्' प्रत्यय है। (६) अमित । पूर्वोक्त 'माङ्' धातु से 'अनद्यतने लङ्' (३ / २ /१११) से 'लङ्’ प्रत्यय है। (७) सज्जिहते, सज्जिहताम्, समजिहत । सम् - उपसर्गपूर्वक 'ओहाङ् गतौं (जु०आ०) धातु से पूर्ववत् । ईकारादेश: (३८) ई हल्यघोः । ११३ | प०वि० - ई १।१ (सु-लुक् ) हलि ७ । १ अघो: ६ । १ । स०-न घुरिति अघुः, तस्य-अघो: ( नञ्तत्पुरुषः ) । अनु० - अङ्गस्य, क्ङिति सार्वधातुके लोपः श्नाभ्यस्तयोः, आत इति चानुवर्तते । (३ । २ । १२३) से - आदेश और 'श्लो' , 1 " अन्वयः - अघोः श्नाभ्यस्तयोरातो हलि क्ङिति ई: । अर्थ :- श्ना - प्रत्ययन्तानां घुवर्जितानाम् अभ्यस्तानां चाङ्गानाम् आकारस्य स्थाने हलादौ सार्वधातुके किति ङिति च प्रत्यये परत ईकारादेशो भवति ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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