SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 668
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५१ षष्टाध्यायस्य चतुर्थः पादः (२) भिन्द्धि । भिद्+लोट् । भिद्+ल् । भिद्+सिम् । भि नम् द्+सि । भिनद्+हि। भिन्द्+धि । भिन्द्धि। यहां भिदिर् विदारणे' (रुधा०प०) धातु से पूर्ववत् लोट्' प्रत्यय और सिप' के स्थान में हि' आदेश है। इनसोरल्लोप:' (६।४।१११) से 'श्नम्' के अकार का लोप होता है। इस सत्र से झलन्त भिन्द' अङ्ग से परे हि' के स्थान में 'धि' आदेश होता है। ऐसे ही छिदिर् द्वैधीकरणे' (रुधा०प०) धातु से-छिन्दद्धि । धि-आदेश: (२७) श्रुशृणुपृकृवृभ्यश्छन्दसि।१०२। प०वि०-श्रु-शृणु-पृ-कृ-वृभ्य: ५ ।३ छन्दसि ७।१ । सo-श्रुश्च शृणुश्च पृश्च कृश्च वृश्च ते श्रुशृणुप्रकृवरः, तेभ्य:श्रुशृणुपृकृवृभ्यः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, हे:, धिरिति चानुवर्तते। अन्वयः-छन्दसि श्रुशृणुप्रकृवृभ्योऽङ्गेभ्यो हेर्धि: । अर्थ:-छन्दसि विषये श्रुशृणुपृकृवृभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरस्य हि-प्रत्ययस्य स्थाने धिरादेरादेशो भवति।। उदा०-(श्रु:) श्रुधी हवम् (ऋ० २।११।१) (शृणुः) गिर: शृणुधी (ऋ० ८।१३।७)। (पृ:) पूर्धि (ऋ० ८।७८।१०)। (कृ:) उरु णस्कृधि (ऋ० ८।७५।११) । (वृ:) अपा वृधि (ऋ० १।७।६)। आर्यभाषा: अर्थ- (छन्दसि) वेदविषय में (श्रु०वृभ्य:) श्रु, शृणु, पृ. कृ और वृ (अङ्गस्य) अगों से परे (हे:) हि-प्रत्यय के स्थान में (धि) धि-आदेश होता है। __उदा०-(श्रु) श्रुधी हवम् (ऋ० २।११।१)। श्रुधि-तू सुन। (शृणु) गिरः शृणुधी (ऋ० ८।१३।७) । शृणुधि-तू सुन। (ए) पूर्धि (ऋ० ८१७८ ।१०)। पूर्धि-तू पालन/पूषण कर। (क:) उरु णस्कृधि (ऋ० ८।७५ ।११)। कृधि-तू कर। (व) अपा वृधि (ऋ० १।७।६) । वृधि-तू आच्छादित कर। सिद्धि-(१) श्रुधि । श्रु+लोट् । श्रु+ल। श्रु+शप्+सिम्। श्रु+o+सि। श्रु+हि। श्रु+धि। श्रुधि। यहां 'श्रु श्रवणे' (भ्वा०प०) धातु से लोट् च' (३।३।१६२) से 'लोट्' प्रत्यय है। व्यत्ययो बहुलम्' (३।१।८५) से व्यत्यय से शप्' विकरण-प्रत्यय और 'बहुलं छन्दसि' (२।४।७३) से इसका लुक होता है। इस सूत्र से 'श्रु' अङ्ग से परे 'हि' के स्थान में
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy