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________________ ६३६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(ह) ते जुहति । वे सब यज्ञ करते हैं। ते जहत । वह यज्ञ करे। जहत । यज्ञ करता हुआ। (श्नु) ते सुन्वन्ति । वे सब पैदा होते हैं। ते सुन्वन्तु । वे सब पैदा होवें। ते असुन्वन् । वे सब पैदा हुये। ___ सिद्धि-(१) जुहति। हु+लट् । हु+ल। हु+झि। हु+शप्+झि। हु+o+झि। हु-हु+अत् इ। झु-हु+अति । जु-ह+अति । जुह्वति । यहां हु दानादनयोः, आदाने चेत्येके (जु०प०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से वर्तमानकाल अर्थ में लट्' प्रत्यय है। 'जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२।४।७५) से शप्' को श्लु (लोप) और 'श्लौ' (६।१ ।१०) से धातु को द्वित्व होता है। 'अदभ्यस्तात्' (७।१।४) से 'झ' के स्थान में 'अत्' आदेश होता है। 'कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास के हकार को चवर्ग झकार और अभ्यासे चर्च' (८।४।५४) से झकार को जश् जकार होता है। इस सूत्र से अजादि सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर यण' (व) आदेश होता है। हु' धातु के उकार से पूर्व संयोग नहीं है तथा द्वित्व अवस्था में (हु-हु) यह अनेकाच् है। ऐसे ही लोट् लकार में-जुहतु। हु' धातु से लट: शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे (३।२।१२४) से 'शतृ' प्रत्यय करने पर-जुहत् । (२) सुन्वन्ति। सु+लट् । सु+ल। सु+झि। सु+श्नु+अन्ति। सु+नु+अन्ति। सु+न् उ+अन्ति। सु+न् व्+अन्ति। सुन्वन्ति । यहां पुत्र अभिषवे' (स्वा०उ०) धातु से पूर्ववत् 'लट्' प्रत्यय है। 'स्वादिभ्य: अनुः' (३।१।७३) से 'अनु' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से जिसके उकार से पूर्व संयोग नहीं है तथा जो अनेकाच् अङ्ग है उस इस 'सु+नु' अनु-प्रत्ययान्त अङ्ग को अजादि सार्वधातुक 'अन्ति' प्रत्यय परे होने पर यण' (व्) आदेश होता है। ऐसे ही लोट् लकार में-सुन्वन्तु, और लङ् लकार में-असुन्वन् । वुक्-आगमः ___(१३) भुवो वुग् लुङ्लिटोः।८८। प०वि०-भुव: ६ ।१ वुक् ११ लुङ्-लिटो: ७।२। स०-लुङ् च लिट् च तौ लुङ्लिटौ, तयो:-लुङ्लिटो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, अचि इति चानुवर्तते। अन्वय:-भुवोऽङ्गस्य अचि लुङ्लिटोवुक्। अर्थ:-भुवोऽङ्गस्य अजादौ लुङि लिटि च प्रत्यये परतो वुगागमो भवति।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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