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________________ ५६४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् तथा 'सार्वधातुके यक्' (३ 1१/६७) से कर्मवाच्य अर्थ में 'यक्' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से अनिट्-आदि, आर्धधातुक 'यक्' प्रत्यय परे होने पर 'णिच्' प्रत्यय का लोप होता है । 'टित आत्मनेपदानां टेरे (३।४।७९) से एत्व होता है। ऐसे ही 'हृञ हरणें' ( भ्वा० उ० ) धातु से - हार्यते । (८) ज्ञीप्सति । ज्ञा+णिच् । ज्ञा+इ। ज्ञा+पुक्+इ। ज्ञा+प्+इ। ज्ञापि । ज्ञपि+सन् । ज्ञप्-ज्ञपि+स । ज्ञ+ज्ञपि+स। ज्ञ+ज्ञप्+स। ज्ञ+ज्ञीप्+स। 0+ज्ञीप्+स। ज्ञीप्स । ज्ञीप्स+लट् । ज्ञीप्स+शप् + तिप् । ज्ञीप्स+अ+ति । ज्ञीप्सति । यहां 'ज्ञा अवबोधनें' (क्रया०प०) धातु से प्रथम हेतुमति च' ( ३।१।२६ ) से 'णिच्' प्रत्यय, 'अर्तिही०' (७/३/३६ ) से 'ज्ञा' धातु को पुक्' आगम होता है। 'मारणतोषणनिशामनेषु ज्ञा' (भ्वा० गणसूत्र ) से 'ज्ञा' धातु की मित्-संज्ञा होकर 'मितां हस्व:' (६।४।९२ ) से इसे ह्रस्व होता है । तत्पश्चात् णिजन्त 'ज्ञपि’ धातु से 'धातोः कर्मण: समानकर्तृकादिच्छायां वा' (३।१1७ ) से इच्छा - अर्थ में 'सन्' प्रत्यय होता है। 'सनीवन्तर्ध०' (७।२।४९) से विकल्प-पक्ष में 'इट्' आगम का अभाव है। इस सूत्र से अनिट्-आदि आर्धधातुक 'सन्' प्रत्यय परे होने पर 'णिच्' प्रत्यय का लोप होता है। 'आप्ज्ञप्यृधामीत्' (७/४/५५ ) से ईत्त्व और 'अत्र लोपोऽभ्यासस्य' (७/४/५८) से अभ्यास का लोप होता है । णि-लोप: (७) निष्ठायां सेटि । ५२ । प०वि० निष्ठायाम् ७ । १ सेटि ७ । १ । स०-इटा सह वर्तते इति सेट्, तस्याम् - सेटि ( बहुव्रीहि: ) । अनु० - अङ्गस्य, आर्धधातुके लोप:, णेरिति चानुवर्तते । अन्वयः-अङ्गस्य णेः सेटि निष्ठायाम् आर्धधातुके लोपः । अर्थ::- अङ्गस्य णि-प्रत्ययस्य सेटि निष्ठायाम् आर्धधातुके प्रत्यये परतो लोपो भवति । 1 उदा०-कारितम् | हारितम् । गणितम् । लक्षितम् । आर्यभाषाः अर्थ-(अङ्गस्य) अङ्ग-सम्बन्धी (णे:) णिच् प्रत्यय को (सेटि) सेट् (निष्ठायाम्) निष्ठासंज्ञक (आर्धधातुके) आर्धधातुक प्रत्यय परे होने पर (लोपः) लोपादेश होता है। उदा०- - कारितम् । कराया हुआ । हारितम् । चोरी कराया हुआ। गणितम् । गिना हुआ। लक्षितम् । देखा हुआ ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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