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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५६३ सिद्धि-(१) अततक्षत् । तक्ष्+णिच् । तक्ष्+इ। तक्षि। तक्षि+लुङ्। अट्+तक्षि+ फिल+ल। अ+तक्षि+च+तिप्। अ+तक्षि+अ+त् । अ+तस्+अ+त् । अ+तक्ष्-तक्ष्+अ+त्। अ+त-तक्ष्+अ+त् । अततक्षत्। यहां तक्षू तनूकरणे' (भ्वा०प०) धातु से प्रथम हेतुमति च' (३।१।२६) से 'णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त तक्षि' धातु से लुङ् (३।२।११०) से भूतकाल में लुङ् प्रत्यय है। लि लुङि' (३।१।४३) से च्लि' प्रत्यय और णिश्रिद्रुनुभ्यः कर्तरि चङ् (३।१।४८) से चिल' के स्थान में 'चङ्' आदेश होता है। इस सूत्र से अनिट्-आदि, आर्धधातुक 'चङ्' प्रत्यय परे होने पर णिच्' प्रत्यय का लोप होता है। तत्पश्चात् 'चडि' (६।१।११) से धातु को द्वित्व होता है। (२) अररक्षत् । 'रक्ष पालने (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत्। (३) आटिटत् । 'अट गतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (४) आशिशत् । 'अश भोजने (क्रया०प०) धातु से पूर्ववत् । (५) कारणा । कृ+णिच् । कृ+इ। का+इ। कारि+युच् । कारि+अन । कार+अन। कारण+टाप् । कारण+आ। कारणा+सु । कारणा। यहां डुकृञ करणे (तनाउ०) धातु से प्रथम हेतुमति च' (३।१।२६) से 'णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त कारि' धातु से ‘ण्यासश्रन्थो युच्' ३।३।१०७) से स्त्रीलिङ्ग में युच्’ प्रत्यय है। युवोरनाको' (७।१।१) से यु' के स्थान में 'अन' आदेश होता है। इस सूत्र से अनिट्-आदि आर्धधातुक 'युच्' प्रत्यय परे होने पर णिच्' प्रत्यय का लोप होता है। 'अट्कुप्वानुम्व्यवायेऽपि' (८।१३) से णत्व और स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से 'टाप्' प्रत्यय है। ऐसे ही हम हरणे (भ्वा०प०) धातु से-हारणा। (६) कारकः । कृ+णिच् । कृ+इ । का+इ। कारि+ण्वुल् । कारि+अक । का+अक। कारक+सु। कारकः। यहां डुकृञ् करणे (तना०3०) धातु से पूर्ववत् णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त कारि' धातु से ‘ण्वुल्तृचौं' (३।१।१३३) से 'एवुल्' प्रत्यय है। इस सूत्र से अनिट्-आदि आर्धधातुक ‘ण्वुल्' प्रत्यय परे होने पर णिच्' प्रत्यय का लोप होता है। युवोरनाको' (७।१।१) से 'वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। ऐसे ही हृञ् हरणे (भ्वा०उ०) धातु से-हारकः। (७) कार्यते । कृ+णिच् । कृ+इ। का+इ। कारि+लट् । कारि+त। कारि+यक्त । कार्+य+ते। कार्यते। यहां 'डुकृञ् करणे' (तना० उ०) धातु से पूर्ववत् णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त कारि' धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से कर्म-वाच्य अर्थ में लट्' प्रत्यय
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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