________________
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (ख) अन्य मत है कि यहां अप उपसर्गपूर्वक स्पर्ध' धातु से 'लङ्' में 'आथाम्' प्रत्यय परे होने पर निपातन से रेफ को सम्प्रसारण और धातुस्थ अकार का लोप होता है। 'बहुलं छन्दस्यमाङ्योगेऽपि' (६।४।७५) से अट् आगम नहीं होता है।
(२) आनृचुः । अय्+लिट् । अ+झि। अ+उस् । अ०ऋच्+उस्। ० ऋच्+उस् । ऋच्-ऋच्+उस् । ऋ-ऋच्+उस् । अर्-ऋच्+उस् । आ-ऋच्+उस् । आनुट् ऋच्+उस्। आ-न् ऋ च+उस् । आनृचुः ।
यहां 'अर्च पूजायाम्' (भ्वा०प०) धातु से लिट् प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'झि' आदेश, 'परस्मैपदानां णलतुसुस्०' (३।४।८) से 'झि' के स्थान में 'उस्' आदेश होता है। निपातन से 'अर्च' के रेफ को सम्प्रसारण और धातुस्थ अकार का लोप होता है। तत्पश्चात् लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१।८) से 'ऋच्' को द्वित्व, उरत्' (७।४।६६) से अभ्यास के ऋकार को अत्त्व, उरण रपरः' (१।११५०) से उसे रपरत्व, हलादिः शेष:' (७।४।६०) से आदि हल का शेषत्व और 'अत आदे:' (७।४।७०) से उसे दीर्घ होता है। तत्पश्चात् तस्मान्नुड् द्विहलः' (७।४।७१) से नुट् आगम होता है।
(३) आनुहुः । 'अर्ह पूजायाम्' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् ।
(४) चिच्युषे । च्यु-लिट् । च्यु+से । च्यु-च्यु+से। च् इ उ-च्यु+से । चि-च्यु+षे। चिच्युषे।
यहां च्युङ् गतौ' (भ्वा०प०) धातु से लिट् प्रत्यय, तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'थास्' आदेश और उसे 'थास: से (३।४।८०) से से' आदेश होता है। लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१८) से धातु को द्वित्व होकर निपातन से अभ्यास को सम्प्रसारण, सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०५) से उकार पूर्वरूप एकादेश होता है। 'आर्धधातुकस्येड्वलादे:' (७/२(३५) से प्राप्त 'इट' आगम निपातन से नहीं होता है। आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से षत्व होता है।
(५) तित्याज। त्यज्+लिट् । त्यज्+तिप् । त्यज्+णल् । त्यज्-त्यज्+अ । त् इ अ ज्-त्याज्+अ। ति-त्याज्+अ। तित्याज।
यहां त्यज हानौ' (भ्वा०प०) धातु से लिट् प्रत्यय, तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'तिप्' आदेश, 'परस्मैपदानां णलतुसुस्०' (३।४।८२) से 'तिम्' के स्थान में णल्' आदेश होता है। लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१८) से धातु को द्वित्व होकर निपातन से अभ्यास को सम्प्रसारण और इट् आगम नहीं होता है।
(६) श्राता:। श्री+क्त। श्रा+त । श्रात+जस् । श्राताः।
यहां 'श्री पाके' (क्रया०3०) धातु से 'निष्ठा' (२।२।३६) से भूतकाल में क्त' प्रत्यय है। निपातन से 'श्री' के स्थान में श्रा' आदेश होता है।