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________________ ४० की- आदेश: पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२३) चायः की । ३५ । प०वि० - चाय: ६।१ की १।१ (सु-लुक्) । अनु० - धातोः, बहुलम्, छन्दसि इति चानुवर्तते । अन्वयः - छन्दसि चायो धातोर्बहुलं की: । अर्थ:-छन्दसि विषये चायो धातो: स्थाने बहुलं की - आदेशो भवति । उदा० - वियन्तान्यन्यं चिक्युर्न नि चिक्युरन्यम् (ऋ० १ । १६४ । ३८ ) । की - आदेश: । न च भवति - अग्निज्योतिर्निच्चाय (यजु० ११ । १ ) । आर्यभाषाः अर्थ-(छन्दसि ) वेदविषय में (चाय:) चाय् (धातोः) धातु के स्थान में (बहुलम् ) प्रायश: (की) की आदेश होता है । उदा० - वियन्तान्यन्यं चिक्युर्न नि चिक्युरन्यम् (ऋ० १।१६४ | ३८ ) की - आदेश । की आदेश नहीं- अग्निज्योतिर्निच्चाय (यजु० ११ 1१ ) । सिद्धि - (१) निचिक्यु: । नि+चाय्+लिट् । नि+की+उस् । नि+की-की-उस् । नि+कि+की+उस् । नि+चि+क्य+उस् । निचिक्युः । यहां नि उपसर्गपूर्वक 'चायृ पूजानिशामनयो:' (भ्वा० उ० ) धातु से लिट् प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में झि' आदेश, 'परस्मैपदानां णलतुसुस्०' (३।४।८२) से झि के स्थान में 'उस्' आदेश है। इस सूत्र से 'चाय्' के स्थान में 'की' आदेश होता है । लिटि धातोरनभ्यासस्य ' ( ६ 1१1८ ) से धातु को द्वित्व, और 'कुहोश्चुः' (७/४/६२ ) से अभ्यास के ककार को चकार आदेश और 'एरनेकाचोऽसंयोगपूर्वस्य' (६/४/८२ ) से यण् आदेश होता है। (२) निचाय्य | नि+चाय् + क्त्वा । नि+चाय् + ल्यप् । नि+चाय्+य। निचाय्य+सु । निचाय्य +0 | निचाय्य । यहां नि उपसर्गपूर्वक 'चाय्' धातु से 'समानकर्तृकयोः पूर्वकाले ( ३।४।२१) से 'क्त्वा' प्रत्यय है। 'समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप्' (७ 1१1३७) से 'क्तवा' को ल्यप्' आदेश है। सूत्र में बहुल - वचन से 'चाय' के स्थान में 'की' आदेश नहीं है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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