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________________ ५५० अङ्गानि ६. नेष्ट ७. त्वष्टृ ८. क्षत्तृ ९. होतृ १०. पोतृ ११. प्रशास्तृ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् शब्दरूपम् नेष्टा, नेष्टारौ, नेष्टारः । त्वष्टा, त्वष्टारौ, त्वष्टारः। क्षत्ता, क्षत्तारौ, क्षत्तारः । होता होता होतार: । पोता पोतारौ पोतारः । भाषार्थ: सोमयाग के १६ याज्ञिकों में से एक । यजुर्वेदज्ञ ऋत्विक् । बढई । विश्वकर्मा । मूर्तिकार । ऋग्वेदज्ञ ऋत्विक् । चतुर्वेदज्ञ ब्रह्मा । प्रशास्ता, प्रशास्तारौ, प्रशास्तारः । प्रशास्ता ( ऋत्विक् विशेष ) । आर्यभाषाः अर्थ-(अप्०प्रशास्तॄणाम्) अप्, तृन्-प्रत्ययान्त, तृच्-प्रत्ययान्त, स्वसृ, नप्तृ, नेष्ट, त्वष्टृ, होतृ, पोतृ और प्रशास्तृ अंगों की उपधा को (असम्बुद्धौ) सम्बुद्धि से भिन्न (सर्वनामस्थाने) सर्वनामस्थान संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (दीर्घ) दीर्घ होता है। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृतभाग में लिखा है। सिद्धि - (१) आप: । अप्+जस् । अप्+अस्। आपस् । आपरु। आपर् । आपः । यहां 'अप्' शब्द से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'अप्' अंग के उपधाभूत अकार को सर्वनामस्थान संज्ञक 'सु' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। (२) कर्ता । कृ+तृन् । कृ+तृ । कर्तृ+सु। कर्तृ अनङ्+सु । कर्तन्+सु । कर्तान्+सु । कर्तान् +0 | कर्ता० । कर्ता । यहां 'डुकृञ् करणे' (तना०3०) धातु से 'तृन्' (३ । २ । १३५) से 'तृन्' प्रत्यय है । 'ऋदुशनस् ०' (७।१।९५ ) से अनङ् आदेश है। इस सूत्र से तृन्नन्त अंग के उपधाभूत अकार को दीर्घ होता है । 'हल्डयाब्भ्यो दीर्घात् ०' (६ /१/६८) से 'सु' का लोप और 'नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य' ( ८1२ 1७ ) से नकार का लोप होता है। (३) कर्तारौ । कर्तृ+औ । कतर्+औ । कर्तार्+औ । कर्तारौ । यहां कर्तृ शब्द से औ प्रत्यय करने पर 'ऋतो ङिसर्वनामस्थानयो:' (७ । ३ ।११०) से ऋकार गुण अकार (अर्) होता है। इस सूत्र से तृन्नन्त कर्तर् अंग के उपधाभूत अकार को दीर्घ होता है। ऐसे ही कर्तारः । (४) कर्ता | यहां 'कृ' धातु से 'ण्वुल्तृचौं' (३|१ | १३३ ) से तृच्' प्रत्यय है । शेष कार्य तृन्नन्त 'कतृ' शब्द के समान है। (५) स्वसा आदि पदों की सिद्धि कर्ता, कर्तारौ कर्तार: के समान है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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