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________________ ५२८ दीर्घः पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (६) उपसर्गस्य घञ्यमनुष्ये बहुलम् ॥१२२॥ प०वि०-उपसर्गस्य ६।१ घञि ७ । १ अमनुष्ये ७ । १ बहुलम् १ ।१ । सo-न मनुष्य इति अमनुष्यः, तस्मिन् - अमनुष्ये ( नञ्तत्पुरुषः ) अनु० - उत्तरपदे, संहितायाम्, दीर्घ, अण इति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायाम् उपसर्गस्याणो घञि उत्तरपदे बहुलं दीर्घः, अमनुष्ये । अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्याणो घञन्ते शब्दे उत्तरपदे परतो बहुलं दीर्घो भवति, अमनुष्येऽभिधेये । उदा०-विक्लिदयते येन सः वीक्लेद: । वीमार्गः । अपामार्ग: | बहुलवचनान्न च भवति - प्रसेवः, प्रसारः । आर्यभाषाः अर्थ- ( संहितायाम् ) संहिता विषय में (उपसर्गस्य ) उपसर्ग के (अणः) अण् को (घञि ) घञ्-प्रत्ययान्त शब्द ( उत्तरपदे ) उत्तरपद परे होने पर (बहुलम् ) प्रायश: (दीर्घः) दीर्घ होता है (अमनुष्ये) यदि वहां मनुष्य अर्थ अभिधेय न हो । उदा०-1 2- विक्लेद: । आर्द्रभाव को दूर करने का साधन । वीमार्ग: । विशुद्धि का साधन । अपामार्ग: । विष आदि को दूर करने का साधन ओषधिविशेष (चिरचिटा ) । बहुलवचन से कहीं दीर्घ नहीं भी होता है- प्रसेव: । थैला आदि । प्रसारः । फैलाव । सिद्धि-(१) विक्लेद: । यहां 'वि' और 'क्लेद' शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'वि' उपसर्ग के अण् इकार को घञन्त 'क्लेद' शब्द उत्तरपद परे होने पर दीर्घ हेत है। 'क्लेद' शब्द में 'क्लिदू आर्द्रभावे' (दि०प०) धातु से 'हलश्च' (३ | ३ |१२१) से संज्ञाविषय में 'घञ्' प्रत्यय है। (२) वीमार्ग: । यहां 'वि' और 'मार्ग' शब्दों का पूर्ववत् प्रादितत्पुरुष समास है। 'मार्ग' शब्द में 'मृजूष शुद्धौं ( अदा०प०) धातु से पूर्ववत् 'घञ्' प्रत्यय है। 'चोः कुः' ( ८1२ 1३०) से 'मृज्' धातु के जकार को कुत्व गकार होता है। ऐसे ही अपामार्गः । मनुष्यः । (३) प्रसेव: । यहां 'प्र' और 'सेव' शब्दों का पूर्ववत् प्रादितत्पुरुष समास है। यहां बहुलवचन से उपसर्ग को दीर्घ नहीं होता है। 'सेव' शब्द में 'षिवु तन्तुसन्ताने' (दि०प०) धातु से 'अकर्तरि च कारके संज्ञायाम्' (३ | ३ | १९) से घञ्' प्रत्यय है। ऐसे ही 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'सृ गतौं' ( वा०प०) धातु से - प्रसारः । यहां अमनुष्य का कथन इसलिये किया गया है कि यहां दीर्घ न हो - निषादो
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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