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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) कवोष्णम् । यहां कु और उष्ण शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१९) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से कुशब्द को उष्ण शब्द उत्तरपद होने पर कव-आदेश होता है।
(२) कोष्णम् । यहां कु और उष्ण शब्दों का पूर्ववत् तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'कु' शब्द को उष्ण शब्द उत्तरपद होने पर का-आदेश है। विकल्प पक्ष में को: कत तत्पुरुषेऽचिं' (६।३।१०१) से कत्-आदेश होता है-कोष्णम् । कव-कादेशविकल्प:
(३१) पथि च च्छन्दसि।१०८। प०वि०-पथि ७१ च अव्ययपदम्, छन्दसि ७।१। अनु०-उत्तरपदे, कोः, तत्पुरुष, का:, विभाषा, कवमिति चानुवर्तते।
अन्वयः-छन्दसि तत्पुरुषे को: पथि चोत्तरपदे कवम्, विभाषा काः।
अर्थ:-छन्दसि विषये तत्पुरुष समासे कुशब्दस्य स्थाने पथिन्-शब्दे चोत्तरपदे कवमादेशो भवति, विकल्पेन च का-आदेशो भवति ।
उदा०-कुत्सित: पन्था इति कवपथ: (कवादेश:)। कापथ: (कादेश:)। कुपथ: (न कादेश:)।
__ आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (कोः) कुशब्द के स्थान में (पथि) पथिन् शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (च) भी (कवम्) कव-आदेश होता है और (विभाषा) विकल्प से (काः) का-आदेश होता है।
उदा०-कवपथ: (कव-आदेश) कुत्सित मार्ग। कापथः । (का-आदेश) अर्थ पूर्ववत् है। कुपथ: (विकल्प पक्ष में का-आदेश नहीं) अर्थ पूर्ववत् है।
सिद्धि-कवपथ: । यहां कु और पथिन् शब्दों का 'कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वेदविषय में तथा तत्पुरुष समास में कुशब्द को पथिन् शब्द उत्तरपद परे होने पर कव-आदेश होता है। ऋक्पूरब्धू:पथामानक्षे (५/४/७४) से समासान्त 'अ' प्रत्यय और 'नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से पथिन् के टि-भाग (इन्) का लोप हेता है।
(२) कापथः । यहां कुशब्द के स्थान में का-आदेश है। शेष कार्य पूर्ववत् है। विकल्प-पक्ष में का-आदेश नहीं है-कुपथः ।