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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ- (सम:) सम् शब्द के स्थान में (अप्रत्यये) अ-प्रत्ययन्त (अञ्चतौ) अञ्चति शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (समिः) समि आदेश होता है।
उदा०-सम्यङ् । मिलकर चलनेवाला (ठीक)। सम्यञ्चौ । दो मिलकर चलनेवाले। सम्यञ्च:। सब मिलकर चलनेवाले। “सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया" (अथर्व० ३।३० ॥३)।
सिद्धि-सम्यङ्। यहां सम् और अङ् शब्दों का 'उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से सम्-शब्द के स्थान में अ-प्रत्ययान्त अञ्च् उत्तरपद होने पर समि आदेश होता है। शेष कार्य विष्वव्यङ्' (६।३।९२) के समान है। तिरि-आदेशः
(१७) तिरसस्तिर्यलोपे।६४।। प०वि०-तिरस: ६१ तिरि ११ (सु-लुक्) अलोपे ७।१। स०-न लोप इति अलोप:, तस्मिन्-अलोपे (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-उत्तरपदे, अञ्चतौ, अप्रत्यये इति चानुवर्तते। अन्वय:-तिरसोऽलोपेऽप्रत्ययेऽञ्चतावुत्तरपदे तिरिः ।
अर्थ:-तिरस्-शब्दस्य स्थाने लोपरहितेऽप्रत्ययान्तेऽञ्चतावुत्तरपदे परतस्तिरिरादेशो भवति।
उदा०-तिरोऽञ्चतीति तिर्यङ् । तिर्यङ्, तिर्यञ्चौ, तिर्यञ्च:।
आर्यभाषा: अर्थ-(तिरस:) तिरस् शब्द के स्थान में (अलोपे) लोप आदेश से रहित (अप्रत्यये) अ-प्रत्ययान्त (अञ्चतौ) अञ्चति शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (तिरि:) तिरि आदेश होता है।
उदा०-तिर्यङ्। टेढ़ा चलनेवाला। तिर्यञ्चौ । दो टेढ़े चलनेवाले। तिर्यञ्च: । सब टेढ़े चलनेवाले।
सिद्धि-तिर्यङ्। यहां तिरस् और अङ् शब्दों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से तिरस् के स्थान में लोप आदेश से रहित, अ-प्रत्ययान्त, अञ्च् उत्तरपद होने पर तिरि' आदेश होता है। शेष कार्य विष्वव्यङ्' (६।३।९२) के समान है।
'अलोप' का कथन इसलिये किया गया है कि जहां अञ्चति के अकार को लोप-आदेश होता है वहां तिरस् को तिरि आदेश न हो जैसे- 'तिरश्चा' (३।१), 'तिरश्चे (४१)। यहां 'अच:' (६।४।१३८) से अञ्चति के अकार का लोप होता है अत: यहां तिरस् को तिरि आदेश नहीं होता है।