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________________ ५०१ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-(विष्वक्) विष्वव्यङ् । विष्वक् सब में व्यापक। (देव) देवव्यङ् । देवों में व्यापक। (सर्वनाम) तव्यङ् । उसमें व्यापक। यद्यङ् । उसमें व्यापक । सिद्धि-विष्वव्यङ् । विष्व्+अञ्चु+क्विन् । विष्वक्+अञ्च्+वि । विष्वक्+अञ्च्+० । विष्व् अद्रि+अनुम् च+० । विष्वद्रि+अन् च् । विष्वद्रि+अन् । विष्वद्रि+अङ् । विष्वव्यङ्+सु। विष्वव्यङ्। __ यहां विष्वक् उपपद 'अञ्चु गतिपूजनयोः' (भ्वा०प०) धातु से ऋत्विादधृक्त्रादिगुष्णिगञ्चुयुजिक्रुञ्चां च' (३।२।५९) से क्विन्' प्रत्यय है। वपरक्तस्य' (६।१।६७) से क्विन्' प्रत्यय का सर्वहारी लोप होता है। इस सूत्र से विष्वक् शब्द के टि-भाग (अक्) को व-प्रत्ययान्त अञ्च्-शब्द परे होने पर अद्रि आदेश होता है। यहां 'अनिदितां हल उपधाया: क्डिति' (६।४।२४) से अञ्च् धातु के उपधाभूत नकार का लोप, प्रत्यय के उगित् होने से उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातो:' (७।१।७०) से अच् को नुम् आगम होता है। हल्याबभ्यो दीर्घात' (६।१।६८) से सु का लोप, संयोगान्तस्य लोपः' (८।२।२३) से संयोगान्त चकार का लोप, 'क्विन्प्रत्ययस्य कु:' (८।२।६२) से नुम् के नकार को कुत्व डकार होता है। ऐसे ही-देवव्यङ्। (२) तव्यङ्। यहां तत् और अङ् शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से सर्वनामसंज्ञक तत् शब्द के टि-भाग (अत्) को व-प्रत्ययान्त 'अञ्च' शब्द परे होने पर अद्रि-आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही यत्' शब्द से-यव्यङ्। विशेष: इस सूत्र में 'अप्रत्यये' के स्थान में 'वप्रत्यये' पाठ भी काशिका में मिलता है। अश्रूयमाण: प्रत्यय: अप्रत्ययः। अश्रूयमाण प्रत्यय अप्रत्यय कहाता है। क्विन्' प्रत्यय का सर्वहारी लोप होने से यह सुनाई नहीं देता है, अत: यह 'अप्रत्यय' है। प्रत्ययस्थ वकार की दृष्टि से इसे 'वप्रत्यय' भी कहा जा सकता है। समि-आदेश: (१६) समः समि।६३। प०वि०-सम: ६१ समि ११ (सु-लुक्) ।। अनु०-उत्तरपदे, अञ्चतौ, अप्रत्यये इति चानुवर्तते । अन्वय:-समोऽप्रत्ययेऽञ्चतावुत्तरपदे समिः । अर्थ:-सम्-शब्दस्य स्थानेऽप्रत्ययान्तेऽञ्चतावुत्तरपदे परत: समिरादेरादेशो भवति। उदा०-समञ्चतीति सम्यङ् । सम्यङ्, सम्यञ्चौ, सम्यञ्च: ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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