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________________ ४६२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) इस बहुव्रीहि समासविधायक सूत्र में अनेकम्' पद प्रथमा-विभक्ति से निर्दिष्ट है अत: इस समास में सब शब्द उपसर्जन हैं। यहां उपसर्जन' शब्द से सर्वोपसर्जन बहुव्रीहि समास का ही ग्रहण किया गया है। इस सूत्र से उपसर्जन बहुव्रीहि समास में सह शब्द को उत्तरपद परे होने पर स-आदेश होता है। विकल्प पक्ष में स-आदेश नहीं है-सहपुत्रः। ऐसे ही-सच्छात्र:, सहच्छात्रः। प्रकृतिभावः (६) प्रकृत्याशिषि।८३। प०वि०-प्रकृत्या ३१ आशिषि ७।१ । अनु०-उत्तरपदे, सहस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-आशिषि सह उत्तरपदे प्रकृत्या। अर्थ:-आशिषि विषये सह-शब्द उत्तरपदे परत: प्रकृत्या भवति । उदा०-पुत्रेण सह इति सहपुत्रः, तस्मै-सहपुत्राय । स्वस्ति देवदत्ताय सहपुत्राय, सहच्छात्राय, सहामात्याय । आर्यभाषा: अर्थ-(आशिषि) आशीर्वाद विषय में (सहः) सह-शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहता है। उदा०-स्वस्ति देवदत्ताय सहपुत्राय, सहच्छात्राय, सहामात्याय । पुत्रों के सहित, छात्रों के सहित और मन्त्रियों के सहित राजा देवदत्त का कल्याण हो। सिद्धि-सहपुत्राय । यहां सह और पुत्र शब्दों का तन सहेति तुल्ययोगे (२।२।२८) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से आशीर्वाद विषय में सह शब्द पुत्र उत्तरपद होने पर प्रकृतिभाव से रहता है अर्थात् उसके स्थान में स-आदेश नहीं होता है। 'नम: स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च' (२।३।१६) से स्वस्ति के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। ऐसे ही-सहच्छात्राय, सहामात्याय । विशेष: 'प्रकृत्याशिषि' यह पाणिनीय सूत्रपाठ है। काशिकाकार ने इसमें 'अगोवत्सहलेषु' यह पाठ मिश्रित किया है। स-आदेश: (७) समानस्य छन्दस्यमूर्धप्रभृत्युदर्केषु।४। प०वि०-समानस्य ६१ छन्दसि ७ ११ अमूर्ध-प्रभृति-उदर्केषु ७।३ ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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