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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः सिद्धि-(१) सचक्रम् । यहां सह और चक्र शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२।११६) से यौगपद्य अर्थ में अव्ययीभाव समास है। इस सूत्र से अव्ययीभाव समास में सह शब्द को कालवाची से भिन्न चक्र शब्द उत्तरपद होने पर स-आदेश होता है।
(२) सधुरम् । यहां सह और धुर् शब्दों का पूर्ववत् अव्ययीभाव समास है। 'ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे (५।४।७४) से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) समहाभाष्यम् । यहां सह और महाभाष्य शब्दों का पूर्ववत् अन्तवचन अर्थ में अव्ययीभाव समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। सादेश-विकल्प:
(५) वोपसर्जनस्य।८२। प०वि०-वा अव्ययपदम्, उपसर्जनस्य ६।१ ।
उपसर्जनसर्वावयवः समास उपसर्जनमिति कथ्यते। यस्य समासस्य सर्वेऽवयवा उपसर्जनीभूता: स सर्वोपसर्जनो बहुव्रीहिसमासोऽत्रोपसर्जनशब्देन
गृह्यते।
अनु०-उत्तरपदे, सहस्य, स इति चानुवर्तते। अन्वय:-उपसर्जनस्य सहस्य उत्तरपदे वा सः ।
अर्थ:-उपसर्जनस्य=बहुव्रीहिसमासस्यावयवभूतस्य सह-शब्दस्य स्थाने उत्तरपदे परतो विकल्पेन स-आदेशो भवति ।
उदा०-पुत्रेण सह इति सपुत्र:, सहपुत्रः। सच्छात्र:, सहच्छात्रः।
आर्यभाषा: अर्थ-(उपसर्जनस्य) जिसमें सब अवयव उपसर्जन हैं उस बहुव्रीहि समास के अवयव भूत (सहस्य) सह शब्द के स्थान में (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (वा) विकल्प से (स:) स-आदेश होता है।
उदा०-सपुत्रः, सहपुत्रः । पुत्र के सहित पिता। सच्छात्र., सहच्छात्र: । छात्रों के सहित उपाध्याय।
सिद्धि-सपुत्र: । यहां सह और पुत्र शब्दों का तेन सहेति तुल्ययोगे (२।२।२७) से उपसर्जन बहुव्रीहि समास है। बहुव्रीहि समास में सब शब्द उपसर्जन-संज्ञक होते हैं क्योंकि प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम् (१।२।४३) अर्थात् समास-विधायक सूत्रों में जो पद प्रथमा-विभक्ति से निर्दिष्ट किया गया है उसकी उपसर्जन संज्ञा होती है।