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________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ४८५ से रहता है अर्थात् नलोपो नञः' (६ ॥३१७३) से प्राप्त उसके नकार का लोप नहीं होता है। 'भ्राट्' शब्द में 'भ्राज दीप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु से 'भ्राजभासधुर्विद्युतोर्जिग्रावस्तुव: क्विप्' (३।२।१७७) से 'क्विप्' प्रत्यय है। वश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से 'भ्राज्' के जकार को षकार, 'झलां जशोऽन्ते (८।२।३९) से षकार को जश् डकार और वाऽवसाने (८।४ १५६) से डकार को चर् टकार होता है। (२) नपात् । यहां नञ् और पात् शब्दों का पूर्ववत् नञ्तत्पुरुष समास है। 'पात्' शब्द में पत्नु गतौ (भ्वा०प०) इस णिजन्त धातु से 'क्विप् च' (३।२।७६) से क्विप्-प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।। (३) नवेदाः। यहां नञ् और वेदस् शब्दों का पूर्ववत् उपपदतत्पुरुष समास है। वेदस्' शब्द में विद ज्ञाने' (अदा०प०) धातु से 'सर्वधातुभ्योऽसुन्' (उणा० ४।१९०) से असुन्' प्रत्यय है। 'अत्वसन्तस्य चाधातो:' (६ ।४।१४) से दीर्घ होता है। (४) नासत्या: । यहां नञ् और असत्य शब्दों का 'न' (२।२।६) से नञ्तत्पुरुष समास है। असत्य शब्द में प्रथम सत् शब्द से तत्र साधुः' (४।४।९८) से साधु (योग्य) अर्थ में यत्' प्रत्यय है पश्चात् 'सत्य' शब्द से पूर्ववत् नञ्तत्पुरुष समास होकर-असत्य और तत्पश्चात् नञ्' और 'असत्य' के नञ्तत्पुरुष समास में इस सूत्र से प्रकृतिभाव होता है। (५) नमुचिः। यहां नञ् और मुचि शब्दों का पूर्ववत् उपपदतत्पुरुष समास है। मुचि' शब्द में 'मृच्लू मोचने (रुधा०प०) धातु से 'गुपधात् कित्' (उणा० ४ ।१२१) से 'इन्' प्रत्यय और वह कित् होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (६) नकुल: । यहां नञ् और कुल शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (७) नखम् । यहां नञ् और खम् शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। (८) नपुंसकम् । यहां नञ् और स्त्रीपुंस शब्दों का नञ्तत्पुरुष समास है 'स्त्रीपुंस' के स्थान में पुंसकभाव निपातित है। (९) नक्षत्रम् । यहां नञ् और क्षत्र शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। 'क्षत्र' शब्द में 'क्षर संचलने' (भ्वा०प०) धातु से 'त्र' प्रत्यय और धातु के रेफ का लोप निपातित है और क्षि निवासगत्योः' (तु०प०) धातु से त्र' प्रत्यय और क्षि' धातु के इकार को अकार आदेश निपातित है। (१०) नक्र: । यहां नञ् क शब्दों का पूर्ववत् उपपदतत्पुरुष समास है। 'क्र:' शब्द क्रमु पादविक्षेपे' (भ्वा०प०) धातु से 'ड' प्रत्यय निपातित है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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