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________________ ४८४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् अनु० - उत्तरपदे, नञ इति चनुवर्तते । अन्वयः-नभ्राण्नपान्नवेदानासत्यानमुचिनकुलनखनपुंसकनक्षत्रनक्र नाकेषु नञ् उत्तरपदे प्रकृत्या । अर्थः-नभ्राण्नपान्नवेदानासत्यानमुचिनकुलनखनपुंसकनक्षत्रनक्रनाकेषु शब्देषु नञ् - शब्द उत्तरपदे परतः प्रकृत्या भवति । उदाहरणम् शब्द: भाषार्थ: नभ्राट् नपात् नवेदा: नाकम् विग्रह: न भ्राजते इति नभ्राट् न पातयतीति नपात् न वेत्तति नवेदाः न चमकनेवाली । कुल को न गिरानेवाला (पौत्र) । न जाननेवाला । नासत्या: सत्सु साधवः सत्या:, न सत्या इति असत्या:, न असत्या इति नासत्या: । नमुचिः न मुञ्चतीति नमुचिः नकुल: नास्य कुलमस्तीति नकुलः नखम् नास्य खमस्तीति नखम् नपुंसकम् न स्त्री न पुमानिति नपुंसकम् नक्षत्रम् न क्षरति क्षीयते इति वा नक्षत्रम् नक्र: न क्रामतीति नक्रः नास्मिन्नकमस्तीति नाकम् आर्यभाषाः अर्थ- (नभ्राण्० नाकेषु) नभ्राट्, नपात्, नवेदा, नासत्या, नमुचि, नकुल, नख, नपुंसक, नक्षत्र, नक्र और नाक शब्दों में (नञ्) नञ् शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर ( प्रकृत्या) प्रकृतिभाव से रहता है, अर्थात् उसके नकार का लोप नहीं होता है। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृतभाग में लिखा है। सिद्धि - (१) भ्राट् । यहां नञ् और भ्राट् शब्दों का 'उपपदमतिङ्' (२1२1१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'नञ्' शब्द 'भ्राट्' उत्तरपद होने पर प्रकृतिभाव सज्जनों में साधु सत्य, जो सत्य नहीं वे असत्य और जो असत्य नहीं हैं, वे नासत्या कहाते हैं (अश्विनीकुमार) न छोड़नेवाला, कामदेव । कुल से रहित नेवला । आकाश से रहित, नाखुन । न स्त्री और न पुरुष, नपुंसक । क्षरण और क्षीणता से रहित - नक्षत्र । पांव से न चलनेवाला मगरमच्छ, घड़ियाल । क=सुख | अक=दुःख | जिसमें अक= दुःख नहीं है वह नाक (स्वर्ग) ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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