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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
४८३ उदा०-अब्राह्मणः । जो कि ब्राह्मण नहीं है। अवृषलः । जो कि वृषल नहीं है। असुरापः । जो कि सुरापान करनेवाला नहीं है। असोमप: । जो कि सोमपान करनेवाला नहीं है।
सिद्धि-अब्राह्मणः । यहां नञ् और ब्राह्मण शब्दों का नम्' (२।२।६) से नञ्तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'नञ्' शब्द के नकार का ब्राह्मण उत्तरपद होने पर लोप होता है और अकार शेष रहता है। ऐसे ही-अवृषल: आदि। नुट्-आगमः
(८) तस्मान्नुडचि।७४। प०वि०-तस्मात् ५।१ नुट ११ अचि ७।१। अनु०-उत्तरपदे, नत्र इति चानुवर्तते । अन्वय:-तस्माद् नमोऽचि उत्तरपदे नुट् ।
अर्थ:-तस्माल्लुप्तनकाराद् नत्र: परस्य अजादेरुत्तरपदस्य नुडागमो भवति।
उदा०-न अश्व इति अनश्वः । अनजः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्मात्) उस लुप्त नकारवाले (नञः) नञ् शब्द से परे (अचि) अजादि (उत्तरपदे) उत्तरपद को (नुट) नुट् आगम होता है।
उदा०-अनश्वः । जो कि घोड़ा नहीं है। अनजः । जो कि बकरा नहीं है।
सिद्धि-अनश्व: । यहां नञ् और अश्व शब्दों का नत्र (२।२।६) से नञ्तत्पुरुष समास है। नलोपो नञः' (६।३।७२) से नञ्' शब्द के नकार का लोप होता है। इस सूत्र से उस लुप्त नकारवाले नञ्' शब्द से परे अजादि अश्व उत्तरपद को नुट्' आगम होता है। ऐसे ही-अनजः । प्रकृतिभावः(६) नभ्राणनपान्नवेदानासत्यानमुचिनकुलनख
नपुंसकनक्षत्रनक्रनाकेषु प्रकृत्या ।७५ । प०वि०-नभ्राट्-नपात्-नवेदास्-नासत्या:-नमुचि-नकुल-नखनपुंसक-नक्षत्र-नक्र- नाकेषु ७।३ प्रकृत्या ३।१।
स०-नभ्राट् च नपाच्च, नवेदाश्च, नासत्याश्च नमुचिश्च नकुलश्च, नखं च नपुंसकं च नक्षत्रं च नक्रश्च नाकं च तानि-नभ्राणनाकानि, तेषु-नभ्राणनाकेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।