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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् आर्यभाषाः अर्थ- (इष्टकेषीकामालानाम्) इष्टका, इषीका और माला शब्दों को यथासंख्य (चिततूलभारिषु) चित, तूल और भारी ( उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर ( ह्रस्व:) ह्रस्व आदेश होता है । ४७६ उदा०- (इष्टका) इष्टकचितम् । ईंटों के द्वारा चिणना । (इषीका) इषीकतूलम् । सींक (सरकंडा ) का तूल (रुई) । ( माला) मालभारिणी कन्या । स्वभाव से माला धारण करनेवाली कन्या। सिद्धि - (१) इष्टकचितम् । यहां इष्टका और चित शब्दों का कर्तृकरणे कृता बहुलम्' (२1१1३२) से तृतीयातत्पुरुष समास है। 'चित' शब्द में 'चिञ् चयनें ( स्वा०3०) धातु से 'नपुंसके भावे क्तः' (३ | ३ | ११४ ) से कृत् - संज्ञक 'क्त' प्रत्यय है । इस सूत्र से 'इष्टका' शब्द को 'चित' उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। (२) इषीकतूलम् | यहां इषीका और तूल शब्दों का 'षष्ठी' (2121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'इषीका' शब्द को 'तूल' उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। (३) मालभारिणी। यहां माला और भारिणी शब्दों का 'उपपदमतिङ्' (२ 1२1१९ ) से उपपदतत्पुरुष समास है। 'भारिणी' शब्द में 'डुभृञ् धारणपोषणयो:' (जुоउ०) धातु से सुप्यजातौ गिनिस्ताच्छील्ये (३1२1७८) से ताच्छील्य अर्थ में 'णिनि' प्रत्यय है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'ऋन्नेभ्यो ङीप् (४1१14) से 'ङीप्' प्रत्यय होता है। हस्वादेश: (२१) खित्यनव्ययस्य । ६६ । प०वि० - खिति ७ । १ अनव्ययस्य ६ |१ | स०-ख इद् यस्य सः खित् तस्मिन् खिति ( बहुव्रीहिः) । न अव्ययमिति अनव्ययम्, तस्य-अनव्ययस्य ( नञ्तत्पुरुषः ) । अनु० - उत्तरपदे, ह्रस्व इति चानुवर्तते । अन्वयः-अनव्ययस्य खिति उत्तरपदे ह्रस्वः । अर्थः-अनव्ययस्य=अव्ययवर्जितस्य शब्दस्य खित्प्रत्ययान्ते शब्दे उत्तरपदे ह्रस्वादेशो भवति । उदा० - कालीमात्मानं मन्यते इति कालिम्मन्या । हरिणिम्मन्या । आर्यभाषाः अर्थ- (अनव्ययस्य) अव्यय से भिन्न शब्द को (खित्) खित्-प्रत्ययान्त शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (ह्रस्वः) ह्रस्व आदेश होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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