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________________ ४७७ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-कालिम्मन्या । स्वयं को काली पार्वती माननेवाली नारी। हरिणिम्मन्या। स्वयं को हरिणी=सुन्दरी माननेवाली नारी। सिद्धि-कालिम्मन्या। यहां काली और मन्या शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। काली शब्द उपपद होने पर 'मन ज्ञाने' (दि०आ०) धातु से आत्ममाने खश् च (३।२।८३) से खश् प्रत्यय है। प्रत्यय के शित्-धर्म से सार्वधातुक होने से दिवादिभ्यः श्यन्' (३।१।६९) से श्यन् विकरण प्रत्यय होता है और इस सूत्र से 'काली' शब्द को खित्-प्रत्ययान्त 'मन्या' शब्द उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। 'अरुषिदजन्तस्य मुम्' (६ ।३।६७) से मुम् आगम है। मुम् आगम ह्रस्व आदेश में बाधक नहीं होता है। ऐसे ही-हरिणिम्मन्या। ।। इति आदेश-प्रकरणम् ।। आगम-प्रकरणम् मुम्-आगमः (१) अरुर्द्विषदजन्तस्य मुम्।६७। प०वि०-अरुस्-द्विषत्-अजन्तस्य ६।१ मुम् १।१ । स०-अच् अन्ते यस्य स:-अजन्त:, अरुश्च द्विषन् च अजन्तश्च एतेषां समाहार:-अरुर्द्विषदजन्तम्, तस्य-अरुर्द्विषदजन्तस्य (बहुव्रीहिगर्भितसमाहारद्वन्द्व:)। अनु०-उत्तरपदे, खिति, अनव्ययस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-अरुढेिषदजन्तस्यानव्ययस्य खिति उत्तरपदे मुम्। अर्थ:-अरुर्द्विषतोरव्ययवर्जितस्य अजन्तस्य शब्दस्य च खित्प्रत्ययान्ते उत्तरपदे मुम् आगमो भवति। उदा०-(अरुस्) अरुषं तुदतीति अरुन्तुद:। (द्विषत्) द्विषन्तं तापयतीति द्विषन्तपः। (अजन्त:) आत्मानं काली मन्यते इति कालिम्मन्या। हरिणिम्मन्या। आर्यभाषा: अर्थ-(अरुर्द्विषत्) अरुष्, द्विषत् और (अनव्ययस्य) अव्यय से भिन्न (अजन्तस्य) अजन्त शब्द को (खिति) खित्-प्रत्ययान्त शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (मुम्) मुम् आगम होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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