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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) उदभारः । यहां उदक और भार शब्दों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। यहां उदक उपपद 'भन भरणे (भ्वा०3०) धातु से 'कर्मण्यण (३।२।१) से 'अण्' प्रत्यय है। अचो णिति' (७।२।११५) से 'भृ' को वृद्धि होती है। इस सूत्र से 'उदक' के स्थान में भार उत्तरपद होने पर उद' आदेश होता है। विकल्प पक्ष में 'उद' आदेश नहीं है-उदकभारः । ऐसे ही हृञ् हरणे' (भ्वा०उ०) धातु सेउदहारः, उदकहारः।
(४) उदवीवध: । यहां उदक और वीवध शब्दों का 'षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से उदक के स्थान में वीवध' उत्तरपद होने पर उद' आदेश होता है। विकल्प पक्ष में उद' आदेश नहीं है-उदकवीवधः ।
(५) उदकगाह: । यहां उदक और गाह शब्दों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। यहां उदक उपपद 'गाहू विलोडने (भ्वा०आ०) धातु से 'कर्मण्यण' (३।२।१) से 'अण्' प्रत्यय है। इस सूत्र से उदक के स्थान में गाह' उत्तरपद होने पर उद' आदेश होता है। विकल्प पक्ष में उद' आदेश नहीं है-उदकगाह:। हस्वादेश-विकल्प:
(१६) इको ह्रस्वोऽङयो गालवस्य ।६१। प०वि०-इक: ६।१ ह्रस्व: ११ अङ्य: ६।१ गालवस्य ६।१। स०-न ङी इति अङी, तस्य-अय: (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-उत्तरपदे, अन्यतरस्यामिति चानुवर्तते।। अन्वय:-अङ्य इक उत्तरपदेऽन्यतरस्यां ह्रस्व:, गालवस्य ।
अर्थ:-ड्यन्तवर्जितस्य इगन्तस्य शब्दस्य उत्तरपदे विकल्पेन ह्रस्वादेशो भवति, गालवस्याचार्यस्य मतेन।
उदा०-ग्रामण्या पुत्र इति ग्रामणिपुत्रः, ग्रामणीपुत्र: । ब्रह्मबन्ध्वा: पुत्र इति ब्रह्मबन्धुपुत्रः, ब्रह्मबन्धूपुत्रः।
अत्र गालवग्रहणं पूजार्थं न तु विकल्पार्थम्, अन्यतरस्यामिति हि अनुवर्तते।
_ आर्यभाषा: अर्थ-(अड्य:) ङी-अन्त से भिन्न (इक:) इगन्त शब्द को (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (ह्रस्व:) ह्रस्व आदेश होता है (गालवस्य) गालव आचार्य के मत में।
उदा०-ग्रामणिपुत्रः, ग्रामणीपुत्र: । गांव के नेता (प्रधान) का पुत्र । ब्रह्मबन्धुपुत्रः, ब्रह्मबन्धूपुत्रः । पतित ब्राह्मणी का पुत्र।
यहां गालव आचार्य का ग्रहण पूजा के लिये किया गया है, विकल्प के लिये नहीं क्योंकि उसके लिये तो 'अन्यतरस्याम्' की अनुवृत्ति है ही।