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________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ४७१ सिद्धि-ग्रामणिपुत्रः। यहां ग्रामणी और पुत्र शब्दों का षष्ठी (२/२1८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इससे ङी- अन्त से भिन्न, इगन्त 'ग्रामणी' शब्द को पुत्र उत्तरपद होने पर ह्रस्व- आदेश होता है। विकल्प पक्ष में ह्रस्व आदेश नहीं है- ग्रामणीपुत्रः । 'ग्रामणी' शब्द में 'सत्सूद्विष०' (३1२ 1६१) से क्विप् प्रत्यय है- ग्रामं नयतीति ग्रामणीः । ऐसे ही - ब्रह्मबन्धुपुत्र:, ब्रह्मबन्धूपुत्रः 1 हस्वादेश: (१७) एक तद्धिते च । ६२ । प०वि०-एक ६ ।१ (लुप्तषष्ठीकं पदम् ) तद्धिते ७ । १ च अव्ययपदम् । अनु० - उत्तरपदे, ह्रस्व इति चानुवर्तते । अन्वयः - एकस्य उत्तरपदे तद्धिते च ह्रस्वः । अर्थ:- एकशब्दस्य उत्तरपदे तद्धिते च परतो ह्रस्वादेशो भवति । उदा०-(उत्तरपदम्) एकस्याः क्षीरमिति एकक्षीरम् । एकदुग्धम् । ( तद्धित:) एकस्या आगतमिति एकरूप्यम् । एकमयम् । एकस्या भाव एकत्वम्, एकता । अत्र एकशब्द: स्त्रियां गृह्यते तत्रैवार्थस्य सम्भवात् स चाऽसहायपर्यायो न संख्यावचन: । आर्यभाषाः अर्थ- (एकस्य ) एक शब्द को (उत्तरपदे) उत्तरपद और ( तद्धिते) तद्धित प्रत्यय परे होने पर (च) भी (ह्रस्व:) ह्रस्वादेश होता है। उदा० - ( उत्तरपद) एकक्षीरम् । अकेली गौ का दूध । एकदुग्धम् । अर्थ पूर्ववत् है । ( तद्धित ) एकरूप्यम् | अकेली शुल्कशाला से आया हुआ द्रव्य । एकमयम् । अर्थ पूर्ववत् है। एकत्वम् । अकेली होना । एकता । अर्थ पूर्ववत् है । यहां स्त्रीलिङ्ग एका शब्द का ग्रहण किया जाता है क्योंकि ह्रस्वादेश वहीं संभव है और यहां एक शब्द असहायवाची है; संख्यावाची नहीं । सिद्धि - (१) एकक्षीरम् । यहां एका और क्षीर शब्दों का 'षष्ठी' (२121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से असहायवाची 'एका' शब्द को क्षीर उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। ऐसे ही - एकदुग्धम् । (२) एकरूप्यम्। यहां 'एका' शब्द से हेतुमनुष्येभ्योऽन्यतरस्यां रूप्यः' (४।३।८१) से तद्धित 'रूप्य' प्रत्यय है। इस सूत्र से असहायवाची एका शब्द को तद्धित रूप्य' प्रत्यय पदे होने पर ह्रस्व आदेश होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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