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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ____ अन्वय:- जातेर्भाषितपुंस्कादनूङ: स्त्रियाश्च अमानिनि उत्तरपदे पुंवन्न।
अर्थ:-जातिवाचिनो भाषितपुंस्कादनूङ: यस्माद् भाषितपुंस्काच्छब्दाद् ऊप्रत्ययो न कृतस्तस्य स्त्रीलिङ्गस्य शब्दस्य च मानिशब्दवर्जिते उत्तरपदे पुंलिङ्गशब्दस्येव रूपं न भवति ।
__ उदा०-कठी भार्या यस्य स:-कठीभार्य: । बढ्चीभार्यः । याप्या कठीति कठीपाशा। बढ्चीपाशा । कठीवाचरति-कठीयते। बचीयते।
आर्यभाषा: अर्थ-(जाते.) जातिवाची (भाषितपुंस्कादूनङ्) जिस शब्द ने समान आकृति में पुंलिङ्ग अर्थ को कहा है उस ऊप्रत्यय से रहित (स्त्रियाः) स्त्रीलिङ्ग शब्द के स्थान में (अमानिनि) मानी शब्द से भिन्न (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (पुंवत्) पुंलिङ्ग शब्द के समान रूप (न) नहीं होता है।
उदा०-कठीभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी भार्या कठ जाति की है। बढचीभार्यः । वह पुरुष कि जिसकी भार्या बढच जाति की है। कठीपाशा। कठ जाति की निन्दित नारी। बढचीपाशा । बढच जाति की निन्दित नारी। कठीयते । कठ जाति की नारी के समान आचरण करनेवाली। बह्व॒चीयते । बह्वच जाति की नारी के समान आचरण करनेवाली।
सिद्धि-कठीभार्यः । यहां कठी और भार्या शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से जातिवाची, भाषितपुंस्क, ऊप्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग कठी शब्द को भार्या उत्तरपद होने पर पुंबद्भाव नहीं होता है।
कठीपाशा' आदि शब्दों की सिद्धि दत्तापाशा' आदि (६।३।३८) शब्दों के समान है। पुंवद्भावः
(६) पुंवत् कर्मधारयजातीयदेशीयेषु।४२। प०वि०-पुंवत् अव्ययपदम्, कर्मधारय-जातीय-देशीयेषु ७।३ ।
स०-कर्मधारयश्च जातीयश्च देशीयश्च ते कर्मधारयजातीयदेशीयाः, तेषु-कर्मधारयजातीयदेशीयेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। ।
अनु०-उत्तरपदे, स्त्रिया:, पुंवत्, भाषितपुंस्कादनूङ् इति चानुवर्तते ।