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षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः अनु०-उत्तरपदे, स्त्रिया:, पुंवत्, भाषितपुंस्कादनूङ, न इति चानुवर्तते।
अन्वय:-ईत: स्वाङ्गाद् भाषितपुंस्कादनूङ: स्त्रियाश्च अमानिनि उत्तरपदे पुंवन्न। ___अर्थ:-ईकारान्तात् स्वाङ्गवाचिनो भाषितपुंस्कादनूङ: यस्माद् भाषितपुंस्काच्छब्दात् ऊप्रत्ययो न कृतस्तस्य स्त्रीलिङ्गस्य शब्दस्य मानिनिवर्जिते उत्तरपदे परतश्च पुंलिङ्गशब्दस्येव रूपं न भवति ।
उदा०-दीर्घकेशी भार्या यस्य स:-दीर्घकेशीभार्यः । याप्या दीर्घकेशी इति दीर्घकेशीपाशा । श्लक्ष्णकेशीपाशा। दीर्घकेशीवाचरति-दीर्घकेशीयते । श्लक्ष्णकेशीयते।
आर्यभाषा अर्थ-(ईत:) ईकारान्त (स्वाङ्गात्) स्वाङ्वाची (भाषितपुंस्कादनूङ्) जिस शब्द ने समान आकृति में पुंलिङ्ग अर्थ को कहा है, उस ऊप्रत्यय से रहित (स्त्रिया:) स्त्रीलिङ्ग शब्द के स्थान में (च) भी (अमानिनि) मानी से भिन्न (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (पुंवत्) पुंलिङ्ग शब्द के समान रूप (न) नहीं होता है।
उदा०-दीर्घकेशीभार्यः। वह पुरुष कि जिसकी दीर्घ केशोंवाली भार्या है। दीर्घकेशीपाशा। दीर्घ केशोंवाली निन्दित नारी। श्लक्ष्णकेशीपाशा। कोमल केशोंवाली निन्दित नारी। दीर्घकेशीयते। जो दीर्घ केशोंवाली नारी के समान आचरण करती है। श्लक्ष्णकेशीयते। जो कोमल केशोंवाली नारी के समान आचरण करती है।
सिद्धि-दीर्घकेशीभार्यः । यहां दीर्घकेशी और भार्या शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। दीर्घकेशी शब्द में स्वागाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात् (४।१।५४) से 'दीर्घकेशी' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में 'डी' प्रत्यय है। इस सूत्र से ईकारान्त, स्वाङ्गवाची, भाषितपुंस्क, ऊप्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग 'दीर्घकेशी' शब्द को 'भार्या' शब्द उत्तरपद होने पर पुंवद्भाव नहीं होता है।
'दीर्घकेशीपाशा' आदि शब्दों की सिद्धि दत्तापाशा' आदि (६।३।३८) शब्दों के समान है। पुंवद्भाव-प्रतिषेधः
(८) जातेश्च।४१ प०वि०-जाते: ५।१ च अव्ययपदम् ।
अनु०-उत्तरपदे, स्त्रिया:, पुंवत्, भाषितपुंस्कादनूङ्, न अमानिनि इति चानुवर्तते।