SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् कृतस्तस्य स्त्रीलिङ्गस्य शब्दस्य उत्तरपदे परत: पुंलिङ्गशब्दस्येव रूपं न भवति। उदा०-सौनी भार्या यस्य स:-सौनीभार्य: । माथुरीभार्य: । याप्या स्रौनीति-स्रौनीपाशा । माथुरीपाशा । स्रौनीवाचरति-स्रौनीयते । माथुरीयते। आत्मानं स्रौनी मन्यते इति सौजीमानिनी। माथुरीमानिनी। आर्यभाषा: अर्थ-(अरक्तविकारे) जो रक्त और विकार अर्थ में अविहित (वृद्धिनिमित्तस्य) वृद्धि का हेतु (तद्धितस्य) तद्धित प्रत्यय है, उस तद्धितप्रत्ययान्त (भाषितपुंस्कादनूङ:) जिस शब्द ने समान आकृति में पुंलिङ्ग अर्थ को कहा है, उस ऊङ् प्रत्यय से रहित (स्त्रिया:) स्त्रीलिङ्ग शब्द के स्थान में (च) भी (पुंवत्) पुंलिङ्ग शब्द के समान रूप (न) नहीं होता है। उदा०-सौनीभार्य: । वह पुरुष कि जिसकी भार्या सुघ्न जनपद की है। माथुरीभार्यः । वह पुरुष कि जिसकी भार्या मथुरा जनपद की है। स्रौनीपाशा । सुघ्न जनपद की निन्दित नारी। माथुरीपाशा । मथुरा जनपद की निन्दित नारी। सौजीयते । त्रुघ्न जनपद की नारी के समान आचरण करती है। माथुरीयते। मथुरा जनपद की नारी के समान आचरण करती है। स्रोप्नीमानिनी। स्वयं को त्रुघ्न जनपद की नारी माननेवाली। माथुरीमानिनी। स्वयं को मथुरा जनपद की नारी माननेवाली। सिद्धि-सौनीभार्यः। यहां स्रौनी और भार्या शब्दों का अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। स्रौनी शब्द में त्रुघ्न शब्द में तत्र भव:' (४।३।५३) से भव अर्थ में अण्-प्रत्यय है जो कि वृद्धि का निमित्त तद्धित प्रत्यय है और रक्त और विकार अर्थों से भिन्न है। स्त्रीत्व-विवक्षा में टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इस भाषितस्क, ऊप्रत्यय से रहित, स्त्रीलिङ्ग सौजी शब्द को भार्या उत्तरपद होने पर पुंवद्भाव नहीं होता है। ऐसे ही-माथुरीभार्यः । ___ नौजीपाशा आदि शब्दों की सिद्धि दत्तापाशा आदि (६।३।३८) शब्दों के समान है। पुंवद्भाव-प्रतिषेधः (७) स्वाङ्गाच्चेतोऽमानिनि।४०। प०वि०-स्वाङ्गात् ५ १ च अव्ययपदम्, ईत: ५।१ अमानिनि ७।१। स०-स्वस्य अङ्गमिति स्वाङ्गम्, तस्मात्-स्वाङ्गात् (षष्ठीतत्पुरुषः)। न मानी इति अमानी, तस्मिन् अमानिनि (नञ्तत्पुरुषः) ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy