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पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्र
-प्रवचनम्
उदा० - द्यौश्च क्षामा च ते द्यावाक्षामे । द्यावाक्षामा (ऋ० ८ । १८ । १६ ) । द्यौश्च भूमिश्च ते द्यावाभूमी (ऋ० १०।६५ । ४) ।
आर्यभाषाः अर्थ- (देवताद्वन्द्वे) देवतावाची शब्दों के द्वन्द्वसमास में (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (दिवः) दिव्-शब्द के स्थान में ( द्यावा ) द्यावा आदेश होता है।
उदा०-द्यावाक्षामा (ऋ० ८ । १८ । १६) द्युलोक और पृथिवीलोक देवता । द्यावाभूमी (ऋ० १०/६५/४) द्युलोक और भूमि लोक देवता ।
सिद्धि-द्यावाक्षामे । यहां दिव् और क्षामा शब्दों का 'चार्थे द्वन्द्वः' (२ / २ /२९ ) से द्वन्द्वसमास है। इस सूत्र से इस देवतावाची द्वन्द्वसमास में दिव् के स्थान में द्यावा आदेश होता है। ऐसे ही - द्यावाभूमी ।
दिवस्-आदेशः
(६) दिवसश्च पृथिव्याम् ॥ ३० ॥ प०वि०-दिवसः १।१ च अव्ययपदम्, पृथिव्याम् ७।१। अनु० - उत्तरपदे, देवताद्वन्द्वे, दिवः द्यावा इति चानुवर्तते । अन्वयः - देवताद्वन्द्वे पृथिव्याम् उत्तरपदे दिवो दिवसो द्यावा च । अर्थः-देवतावाचिनां शब्दानां द्वन्द्वे समासे पृथिव्याम् उत्तरपदे दिवः स्थाने दिवसो द्यावा चाऽऽदेशो भवति ।
उदा०- (दिवस ) द्यौश्च पृथिवी च ते दिवस्पृथिव्यौ । ( द्यावा ) द्यावापृथिव्यौ।
आर्यभाषाः अर्थ- (देवताद्वन्द्वे) देवतावाची शब्दों के द्वन्द्वसमास में (पृथिव्याम्) पृथिवी - शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (दिवः ) दिव्-शब्द के स्थान में (दिवस ) दिवस् (च) और ( द्यावा ) द्यावा आदेश होते हैं।
उदा०
-(दिवस) दिवस्पृथिव्यौ । द्यौ और पृथिवी देवता । ( द्यावा ) द्यावापृथिव्यौ । अर्थ पूर्ववत् है ।
सिद्धि-दिवस्पृथिव्यौ । यहां दिव् और पृथिवी शब्दों का 'चार्थे द्वन्द्व : ' (२/२/२९ ) से द्वन्द्वसमास है। इस सूत्र से इस देवतावाची द्वन्द्वसमास में दिव् के स्थान में पृथिवी - शब्द उत्तरपद होने पर दिवस् - आदेश होता है। ऐसे ही द्वितीय पक्ष में- द्यावापृथिव्यौ ।
उषासा-आदेशः
(७) उषासोषसः | ३१ |
प०वि० - उषासा १ । १ उषसः ६ । १ ।