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________________ ४३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-इन्द्रस्य वरुणश्च तौ-इन्द्रावरुणौ। इन्द्रासोमौ । इन्द्राबृहस्पती। आर्यभाषा: अर्थ-(देवताद्वन्द्वे) देवतावाची शब्दों के द्वन्द्वसमास में (च) भी (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर पूर्वपद को (आनङ्) आनङ् आदेश होता है। उदा०-इन्द्रावरुणौ। इन्द्र और वरुण देवता। इन्द्रासोमौ । इन्द्र और सोम देवता। इन्द्राबृहस्पती । इन्द्र और बृहस्पति देवता। सिद्धि-इन्द्रावरुणौ । यहां इन्द्र और वरुण शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से द्वन्द्वसमास है। इस सूत्र से इस देवतावाची शब्दों के द्वन्द्वसमास में वरुण उत्तरपद होने पर इन्द्र पूर्वपद को आनङ् आदेश होता है। शेष कार्य होतापोतारौं' (६।३।२५) के समान है। ऐसे ही-इन्द्रासोमौ आदि। ईद्-आदेशः (३) ईदग्नेः सोमवरुणयोः ।२७। प०वि०-ईत् ११ अग्ने: ६।१ सोम-वरुणयो: ७।२। स०-सोमश्च वरुणश्च तौ सोमवरुणौ, तयो:-सोमवरुणयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-उत्तरपदे, देवताद्वन्द्वे इति चानुवर्तते। अन्वय:-देवताद्वन्द्वे सोमवरुणयोरुत्तरपदयोरग्नेरीत्। अर्थ:-देवतावाचिनां शब्दानां द्वन्द्वे समासे सोमवरुणयोः शब्दयोरुत्तरपदयोरग्ने: पूर्वपदस्य ईद्-आदेशो भवति । उदा०-(सोम:) अग्निश्च सोमश्च तौ-आग्नीषोमौ। (वरुण:) अग्निश्च वरुणश्च तौ-अग्नीवरुणौ। आर्यभाषा: अर्थ- (देवताद्वन्द्वे) देवतावाची शब्दों के द्वन्द्वसमास में (सोमवरुणयोः) सोम और वरुण शब्द उत्तरपद होने पर (अग्ने:) अग्नि पूर्वपद को (ईत्) ईकार आदेश होता है। उदा०-(सोम) अग्नीषोमौ। अग्नि और सोम देवता। (वरुण) अग्नीवरुणौ । अग्नि और वरुण देवता। सिद्धि-अग्नीषोमौ । यहां अग्नि और सोम शब्दों का चार्थे द्वन्द्वः' (२।२।२९) से द्वन्द्वसमास है। इस सूत्र से इस द्वन्द्वसमास में सोम शब्द उत्तरपद होने पर अग्नि पूर्वपद को ईकार अन्त्य आदेश होता है। 'अग्ने: स्तुतस्तोमसोमा:' (८।३।८२) से षत्व होता है। ऐसे ही-आनीवरुणौ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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