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________________ ४१५ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(ओज:सहोऽम्भस्तमस:) ओजस्, सहस्, अम्भस् और तमस् शब्दों से परे (तृतीयायाः) तृतीया विभक्ति का (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (अलुक्) लुक् नहीं होता है। उदा०-(ओज:) ओजसाकृतम्। बल से किया हुआ। (सह:) सहसाकृतम् । शक्ति से किया हुआ। (अम्भः) अम्भसाकृतम् । जल से शुद्ध किया हुआ। (तमः) तमसाकृतम् । अन्धकार से आच्छादित किया हुआ। ___ सिद्धि-ओजसाकृतम् । यहां ओजस् और कृत शब्दों का कर्तृकरणे कृता बहुलम् (२।१।३२) से तृतीयातत्पुरुष समास है। इस सूत्र से ओजस् शब्द से परे कृत उत्तपद होने पर तृतीया विभक्ति का लुक् नहीं होता है। ऐसे ही-सहसाकृतम् आदि। तृतीया-अलुक (४) मनसः संज्ञायाम्।४। प०वि०-मनस: ५ १ संज्ञायाम् ७१ । अनु०-अलुक्, उत्तरपदे, तृतीयाया इति चानुवर्तते । अन्वय:-संज्ञायां मनसस्तृतीयाया उत्तरपदेऽलुक् । अर्थ:-संज्ञायां विषये मन:शब्दात् परस्यास्तृतीयाया उत्तरपदे परतोऽलुग् भवति। उदा०-मनसा दत्ता इति-मनसादत्ता । मनसागुप्ता । मनसासङ्गता। आर्यभाषा: अर्थ- (संज्ञायाम्) संज्ञा विषय में (मनस:) मनस्-शब्द से परे (तृतीयायाः) तृतीया विभक्ति का (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (अलुक्) लुक् नहीं होता है। उदा०-मनसादत्ता। मन से प्रदान की हुई नारी। मनसागुप्ता। मन से रक्षा की हुई नारी। मनसासङ्गता । मन से संगत हुई नारी। ये नारियों की संज्ञाविशेष हैं। सिद्धि-मनसादत्ता। यहां मनस् और दत्ता शब्दं का कर्तृकरणे कृता बहुलम् (३।१।३२) से तृतीया तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से मनस् शब्द से परे दत्ता उत्तरपद होने पर तृतीया विभक्ति का लुक नहीं होता है। ऐसे ही-मनसागुप्ता आदि। लोक में भी 'मनसाराम' आदि इस प्रकार के नाम मिलते हैं। तृतीया-अलुक् (५) आज्ञायिनि च।५। प०वि०-आज्ञायिनि ७१ च अव्ययपदम् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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