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________________ ४१४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(स्तोकम्) स्तोकाद् मुक्त इति स्तोकान्मुक्त: । (अल्पम्) अल्पान्मुक्त: । (अन्तिकम्) अन्तिकादगत: । (अभ्याशम्) अभ्याशादागत:। (दूरम्) दूरादागत:। (विप्रकृष्टम्) विप्रकृष्टादागतः। (कृच्छ्रम्) कृच्छ्रान्मुक्त:। 'स्तोकान्तिकदूरार्थकृच्छ्राणि क्तेन (२।१।३९) इत्यत्र पठिता: स्तोकादय: शब्दा अत्र गृह्यन्ते। आर्यभाषा: अर्थ-(स्तोकादिभ्यः) स्तोक आदि शब्दों से परे (पञ्चम्याः) पञ्चमी विभक्ति का (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (अलुक्) लुक् लोप नहीं होता है। ___ उदा०-(स्तोक) स्तोकान्मुक्त: । थोड़े प्रयत्न से मुक्त हुआ। (अल्प) अल्पान्मुक्त: । बहुत थोड़े प्रयत्न से मुक्त हुआ। (अन्तिक) अन्तिकादगतः । समीप से आया। (अभ्याश) अभ्याशादागतः । पास से आया। (दूर) दूरदागतः। दूर से आया। (विप्रकृष्ट) विप्रकृष्टादागतः । दूर से आया। (कृच्छ्र) कृच्छ्रान्मुक्तः । दु:ख से मुक्त हुआ। सिद्धि-स्तोकान्मुक्त: । यहां स्तोक और मुक्त शब्दों का स्तोकान्तिकदूरार्थकृच्छ्राणि क्तेन' (२।१।३९) से पञ्चमी तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से स्तोक आदि शब्दों से परे क्तान्त 'मुक्त' शब्द उत्तरपद होने पर पंचमी विभक्ति का लुक नहीं होता है। 'सपो धातुप्रादिपदिकयो:' (२।४।७१) से सुप् का लुक् प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध किया गया है। __ यहां स्तोकान्तिकदूरार्थकृच्छ्राणि क्तेन (२।१।३९) इस सूत्र में पठित स्तोक आदि शब्दों का ग्रहण किया जाता है। तृतीया-अलुक् (३) ओजःसहोऽम्भस्तमसस्तृतीयायाः ।३। प०वि०-ओज:-सह:-अम्भ:-तमस: ५।१ तृतीयाया: ६।१। स०-ओजश्च सहश्च अम्भश्च तमश्च एतेषां समाहार:ओज:सहोऽम्भस्तमः, तस्मात्-ओज:सहोऽम्भस्तमस: (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-अलुक्, उत्तरपदे इति चानुवर्तते। अन्वय:-ओज:सहोऽम्भस्तमसस्तृतीयाया उत्तरपदेऽलुक् । अर्थ:-ओज:सहोऽम्भस्तमोभ्य: शब्देभ्य: परस्यास्तृतीयाया उत्तरपदे परतोऽलुगू भवति। उदा०-(ओजः) ओजसा कृतमिति ओजसाकृतम्। (सहः) सहसाकृतम्। (अम्भः) अम्भसाकृतम्। (तमः) तमसाकृतम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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