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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- (स्फिग) अपस्फिगम् । नितम्बरहित (बहुव्रीहि)। अपस्फिगम् । दूर हुआ नितम्ब । (प्रादितत्पुरुष) । अपस्फिगम् । नितम्ब को छोड़कर (अव्ययीभाव) । नितम्ब चूतड़। (पूत) अपपूतम् । पवित्रता रहित (बहुव्रीहि)। अपपूतम् । दूर हुई पवित्रता (प्रादितत्पुरुष)। अपपूतम् । पवित्रता को छोड़कर (अव्ययीभाव)। (वीणा) अपवीणम् । वीणा रहित (बहुव्रीहि)। अपवीणम् । दूर हुई वीणा (प्रादितत्पुरुष)। अपवीणम् । वीणा को छोड़कर (अव्ययीभाव) । (अञ्जस्) अपाञ्जः । अञ्जन रहित (बहुव्रीहि)। अपाञ्जः । दूर हुआ अञ्जन (प्रादितत्पुरुष)। अपाञ्ज: अञ्जन को छोड़कर (अव्ययीभाव)। (अध्वन्) अपाध्वा । मार्ग रहित (बहुव्रीहि) । अपाध्वा । दूर हुआ मार्ग (प्रादितत्पुरुष)। अपाध्वा । मार्ग को छोड़कर (अव्ययीभाव) । (कुक्षि) अपकुक्षि: । कुक्षि गर्भाशय से रहित (बहुव्रीहि)। अपकुक्षि: । दूर हुई कुक्षि (प्रादितत्पुरुष)। अपकुक्षि । कुक्षि को छोड़कर (अव्ययीभाव)। (सीरनाम) अपसीरः । सीर हल से रहित (बहुव्रीहि)। अपसीरः । दूर हुआ हल (प्रादितत्पुरुष)। अपसीरम् । हल को छोड़कर (अव्ययीभाव)। ऐसे ही हल के पर्यायवाची-अपहलम्, अपलाङ्गलम् । अर्थ पूर्ववत् है। (नाम) अपनाम । नाम रहित (बहुव्रीहि)। अपनाम । दूर हुआ नाम (प्रादितत्पुरुष)। अपनाम । नाम को छोड़कर (अव्ययीभाव)।
सिद्धि-अपस्फिगम् । यहां अप और स्फिग शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस समास में अप-उपसर्ग से परे स्फिग' उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है।
यहां कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास तथा 'अपपरिबहिरञ्जव: पञ्चम्या' (२।१।१२) से अव्ययीभाव समास भी होता है। ऐसे ही-अपपूतम् आदि। अन्तोदात्तम्
(४६) अधेरुपरिस्थम्।१८८। प०वि०-अधे: ५।१ उपरिस्थम् १।१।
स०-उपरि तिष्ठतीति उपरिस्थम् (उपपदसमास:)। 'सुपि स्थ' (३।२।४) इति क: प्रत्ययः ।।
अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, समासे, उपसर्गादिति चानुवर्तते। अन्वय:-समासेऽधेरुपसर्गाद् उपरिस्थम् उत्तरपदम् अन्त उदात्त:।
अर्थ:-समासमात्रेऽधेरुपसर्गात् परम् उपरिस्थवाचि उत्तरपदम् अन्तोदात्तं भवति।
उदा०-अध्यारूढो दन्त इति अधिदन्त: । अधिकर्णः । अधिकेश: ।
आर्यभाषा: अर्थ- (समासे) समास मात्र में (अधे:) अधि (उपसर्गात) उपसर्ग से परे (उपरिस्थम्) उपरिस्थितवाची (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।