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________________ ४०० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-अभिमुखः । यहां अभि और मुख शब्दों का अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस समास में अभि-उपसर्ग से परे मुख उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ___यहां कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास भी होता है। अन्तोदात्तम् (४४) अपाच्च ।१८६। प०वि०-अपात् ५।१ च अव्ययपदम्। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, समासे, उपसर्गात्, मुखमिति चानुवर्तते। अन्वय:-समासेऽपाद् उपसर्गाच्च मुखम् उत्तरपदम् अन्त उदात्त: । अर्थ:-समासमात्रेऽपाद् उपसर्गाच्च परं मुखमित्युत्तरपदम् अन्तोदात्तं भवति। उदा०-अपगतं मुखं यस्मात् स:-अपमुख: (बहुव्रीहि:)। अपगतं मुखमिति अपमुखम् (प्रादितत्पुरुष:) । अप मुखादिति अपमुखम् (अव्ययीभाव:) । आर्यभाषा: अर्थ-(समासे) समास मात्र में (अपात्) अप (उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (मुखम्) मुख (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा०-अपमुखः । अपगत हटा लिया है मुख जिससे वह द्रव्यविशेष (बहुव्रीहि)। अपमुखम् । हटाया हुआ मुख (प्रादितत्पुरुष)। अपमुखम् । मुख को छोड़कर (अव्ययीभाव) । सिद्धि-अपमुख: । यहां अप और मुख शब्दों का अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस समास में अप-उपसर्ग से परे मुख उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ___यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास और 'अपपरिबहिरञ्चव: पञ्चम्या' (२।१।१२) से अव्ययीभाव समास भी होता है। अव्ययीभाव पक्ष में परिप्रत्यपापा वर्जमानाहोरात्रावयवेषु' (६।२।३३) से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर प्राप्त था, यह उसका अपवाद है। अन्तोदात्तम्(४५) स्फिगपूतवीणाञ्जोऽध्वकुक्षिसीरनामनाम च।१८७। प०वि०-स्फिग-पूत-वीणा-अञ्जस्-अध्वन्-कुक्षि-सीरनाम-नाम ११ च अव्ययपदम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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