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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः होते हैं। (सु) सुयवो देश: । वह देश जिसमें यव अच्छे होते हैं। सुव्रीहिर्देशः । वह देश जिसमें व्रीहि अच्छे होते हैं। सुमाषो देश: । वह देश जिसमें माष अच्छे होते हैं।
सिद्धि-(१) अयवः । यहां नञ् और यव शब्दों 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस बहुव्रीहि समास में नज-शब्द से परे यव उत्तरपद को अन्तोदात्त होता है। नलोपो नत्रः' (६।३ १७३) से नञ् के नकार का लोप होकर अकार शेष रहता है। ऐसे ही-अव्रीहिः, अमाषः ।
(२) सुयवः । यहां सु और यव शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस बहुव्रीहि समास में सु-शब्द से परे यव उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-सुव्रीहिः । सुमाषः। अन्तोदात्तम्
(३१) कपि पूर्वम्।१७३। प०वि०-कपि ७१ पूर्वम् १।१। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्त:, बहुव्रीहौ, नसुभ्यामिति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ नसुभ्याम् उत्तरपदं कपि पूर्वम् अन्त उदात्त: ।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे नसुभ्यां शब्दाभ्यां परम् उत्तरपदं कपि प्रत्यये परत: पूर्वमन्तोदात्तं भवति।
उदा०-(नञ्) न विद्यन्ते कुमार्यो यस्मिन् स:-अकुमारीको देशः। . अवृषलीको देश: । अब्रह्मबन्धूको देशः। (सुः) शोभना विद्यन्ते कुमार्यो यस्मिन् स:-सुकुमारीको देश: । सुवृषलीको देश: । सुब्रह्मबन्धूको देशः। ___ आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (नञ्सुभ्याम्) नञ् और सु शब्दों से परे (उत्तरपदम्) उत्तरपद को (कपि) कप्-प्रत्यय से (पूर्वम्) पूर्व (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-(न) अकुमारीको देश: । वह देश जिसमें कुमारियां नहीं हैं। अवृषलीको देशः । वह देश जिसमें वृषलियां नहीं हैं। वृषली=अविवाहित रजस्वला कन्या। अब्रह्मबन्धूको देशः । वह देश जिसमें ब्रह्मबन्धू स्त्रियां नहीं हैं। ब्रह्मबन्धू पतित ब्राह्मणी। (सु) सुकुमारीको देशः । वह देश जिसमें सुन्दर कुमारियां नहीं हैं। सुवृषलीको देश: । वह देश जिसमें सुन्दर वृषलियां नहीं हैं। सुब्रह्मबन्धूको देश: । वह देश जिसमें सुन्दर ब्रह्मबन्धू स्त्रियां नहीं हैं। । ___ सिद्धि-(१) अकुमारीकः । यहां नञ् और कुमारी शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से इस बहुव्रीहि समास में नञ्-शब्द से परे