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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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(४) तृप्र॒जात: । यहां तृप्र और जात शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है । विकल्प पक्ष में 'तृप्र' पूर्वपद को पूर्ववत् प्रकृतिस्वर होता है। 'तृप्र' शब्द में 'तृप प्रीणने (दि०प०) धातु से 'स्फायितञ्चि०' (उणा० २1१३) से 'र' प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्वोक्त है ।
अन्तोदात्तविकल्पः
(२६) वा जाते । १७१ ।
प०वि०-वा अव्ययपदम्, जाते ७ ।१ ।
अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, अन्तः, बहुव्रीहौ, जातिकालसुखादिभ्य इति चानुवर्तते ।
अन्वयः - बहुव्रीहौ जातिकालसुखादिभ्यो जात उत्तरपदं वाऽन्त उदात्तः । अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे जातिकालवाचिभ्यः कालवाचिभ्यः सुखादिभ्यश्च शब्देभ्यः परं जात इत्युत्तरपदं विकल्पेनान्तोदात्तं भवति ।
उदा०- ( जाति: ) दन्ता जाता यस्य सः - दन्त॒जातः । दन्त॑जा॒तः । स्त॒न॒जाता । स्त॒न॑जा॒ता । ( काल: ) मासो जातो यस्य स: - मासजातः । मास॑जात: । संवत्स॒रजा॒तः । संवत्स॒रजा॑तः । ( सुखादि: ) सुखं जातं यस्य सः-सुखजा॒तः । सुर्खजात: । दुःखजा॒तः । दुःख॑जात: ।
आर्यभाषा: अर्थ- (बहुव्रीहौ ) बहुव्रीहि समास में (जातिकालसुखादिभ्यः) जातिवाची, कालवाची और सुखादि शब्दों से परे (जाते) जात-शब्द ( उत्तरपदम् ) उत्तरपद में (वा) विकल्प से ( अन्त उदात्तः) अन्तोदात्त होता है।
उदा०- (जाति) दन्तजातः । दन्तेजात: । जिसके दांत उत्पन्न हो चुके हैं वह बालक । स्तनजाता । स्तनेजाता। जिसके स्तन उत्पन्न हो चुके हैं वह कुमारी। (काल) मासजातः । मार्सजातः। जिसे उत्पन्न हुये एक मास हो चुका है वह बालक । संवत्सरजात: । संवत्स॒रजत: । जिसे उत्पन्न हुये एक वर्ष हो चुका है वह बालक। (सुखादि) सुखजातः । सुर्खजात: । जिसे सुख हो चुका है वह सुखी पुरुष । दुःखजातः । दुःखेजातः । जिसे दुःख चुका है वह दु:खी पुरुष |
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सिद्धि - (१) दन्तजात: । यहां दन्त और जात शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थों ( २/२/२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से जातिवाची दन्त शब्द से परे 'जात' शब्द उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है ।
यहां विकल्प पक्ष में 'बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम् ( ६ 1२ 1१ ) से दन्त पूर्वपद को