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________________ ३६४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्तोदात्तम् (७) इत्थम्भूतेन कृतमिति च।१४६| प०वि०-इत्थम्भूतेन ३१ कृतम् १।१ इति अव्ययपदम्, च अव्ययपदम्। स०-इमं प्रकारं प्राप्त इति इत्थम्भूत:, तेन-इत्थम्भूतेन (द्वितीयातत्पुरुषोऽस्वपदविग्रहश्च)। अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, तत्पुरुषे, अन्तः, क्त:, कारकादिति चानुवर्तते। अन्वय:-इत्थम्भूतेन कृतमिति च तत्पुरुषे क्त उत्तरपदम् अन्त उदात्तः। अर्थ:-इत्थम्भूतेन कृतमित्यस्मिन्नर्थे च तत्पुरुष समासे कारकात्परं क्तान्तम् उत्तरपदमन्तोदात्तं भवति।। उदा०-सुप्तेन प्रलपितमिति-सुप्तप्रलपितम्। उन्मत्तप्रलपितम्। प्रमत्तगीतम् । विपन्नश्रुतम्। इतिकरणोऽर्थनिर्देशार्थः । आर्यभाषा: अर्थ-(इत्थम्भूतेन) इस प्रकार को प्राप्त हुये के द्वारा (कृतम्) किया हुआ (इति) इस अर्थ में (च) भी (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (कारकात्) कारक से परे (क्त:) क्त-प्रत्ययान्त (उत्तरपदम्) उत्तरपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा०-सुप्तप्रलपितम् । सोये हुये के द्वारा प्रलाप किया हुआ। उन्मत्तप्रलपितम् । पागल हुये के द्वारा प्रलाप किया हुआ। प्रमत्तगीतम् । मस्त हुये के द्वारा गाया हुआ। विपन्नश्रुतम् । विपत्ति में पड़े हुये के द्वारा सुना हुआ। ___ सिद्धि-सुप्तप्रलपितम्। यहां सुप्त और प्रलपित शब्दों का कर्तृकरणे कृता बहुलम्' (२।१।३१) से तृतीयातत्पुरुष समास है। प्रलपित शब्द में प्र-उपसर्गपूर्वक 'लप व्यक्तायां वाचिं' (भ्वा०प०) धातु से निष्ठा' (३।२।१०२) से भूतकाल अर्थ में क्त-प्रत्यय है। इस सूत्र से इत्थम्भूत अर्थ में तथा तत्पुरुष समास में सुप्त कारक से परे क्तान्त प्रलपित उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। सुप्त' शब्द इत्थम्भूत अर्थ का द्योतक है। यहां तृतीया कर्मणि' (६।२।४८) से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर प्राप्त था। यह उसका अपवाद है। ऐसे हीउन्मत्तप्रलपितम् आदि। अन्तोदात्तम् (८) अनो भावकर्मवचनः ।१५०। प०वि०-अन: १।१ भाव-कर्मवचन: १।१। स०-भावश्च कर्म च ते भावकर्मणी, तयो:-भावकर्मणोः, भावकर्मणोर्वचन इति भावकर्मवचन: (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितषष्ठीतत्पुरुषः)।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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