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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
३६५ अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, तत्पुरुष, अन्त:, कारकादिति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्पुरुषे कारकाद् भावकर्मवचनोऽन उत्तरपदम् अन्त उदात्त: ।
अर्थ:-तत्पुरुष समासे कारकात् परं भाववचनं कर्मवचनं चानप्रत्ययान्तम् उत्तरपदमन्तोदात्तं भवति।
उदा०-(भाववचनम्) ओदनभोजनं सुखम्। पय:पानं सुखम्। चन्दनप्रियङ्गुकालेपनं सुखम्। (कर्मवचनम्) राजभोजना: शालय: । राजाच्छादनानि वासांसि।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (कारकात्) कारक से परे (भावकर्मवचनः) भाववाची और कर्मवाची (अन:) अन-प्रत्ययान्त (उत्तरपदम्) उत्तरपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-(भाववचन) ओदनभोजनं सुखम् । ओदन का भोजन सुखदायक है। पयःपानं सुखम् । दूध का पीना सुखदायक है। चन्दनप्रियङ्गुकालेपनं सुखम् । चन्दन और प्रियङ्गुका (राई) का लेप करना सुखदायक है। (कर्मवचन) राजभोजना: शालयः । राजा के भोजन योग्य चावल। राजाच्छादनानि वासांसि। राजा के पहनने योग्य वस्त्र।।
सिद्धि-(१) ओदनभोजनम् । यहां ओदन और भोजन शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। भोजन शब्द में 'भुज पालनाभ्यवहारयोः' (रुधा०आ०) से 'कर्मणि च येन संस्पर्शात् कर्तुः शरीरसुखम् (३।३।११६) से भाव अर्थ में ल्युट् प्रत्यय है। युवोरनाकौ' (७।१।१) से 'यु' के स्थान में अन-आदेश होता है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में ओदन कारक से परे अन-प्रत्ययान्त भोजन उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-पय:पानं सुखम् आदि।
(२) राजभोजना: । यहां राजन् और भोजन शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। भोजन शब्द में पूर्वोक्त सूत्र से कर्म अर्थ में ल्युट् प्रत्यय है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में राजन् कारक से परे अन-प्रत्ययान्त भोजन उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। यह 'गतिकारकोपपदात् कृत्' (६।२।१३८) का अपवाद है। अन्तोदात्तम्(६) मन्क्तिन्व्याख्यानशयनासनस्थान
याजकादिक्रीताः।१५१॥ प०वि०- मन्-क्तिन्-व्याख्यान-शयन-आसन-स्थान-याजकादिक्रीता: १।३।