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________________ ३३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-अ॒जरः। यहां नञ् और जर शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से नञ् से परे जर उत्तरपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-अमर: आदि। आधुदात्तम् (७) सोर्मनसी अलोमोषसी।११७। प०वि०-सो: ५।१ मनसी १।२ अलोमोषसी १।२। स०-मन् च अस् च ते-मनसी (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । लोम च उषस् च ते लोमोषसी, न लोमोषसी इति अलोमोषसी (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितनञ्तत्पुरुषः)। अनु०-उदात्त:, बहुवीही, उत्तरपदादिरिति चानुवर्तते । अन्वय:-बहुव्रीहौ सोर्मनसी, उत्तरपदादिरुदात्त:, अलोमोषसी। अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे सु-शब्दात् परं मन्नन्तम् असन्तं चोत्तरपदम् आधुदात्तं भवति, लोमोषसी शब्दौ वर्जयित्वा। उदा०-(मन्) शोभनं कर्म यस्य स:-सुकर्मा । सुधर्मी। सुप्रथिमा । (अस्) शोभनं पयो यस्य स:-सुपया: । सुयशाः । सुस्रोता: । सुस्रत् । सुध्वत् । ___ आर्यभाषा: अर्थ- (बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (सो:) सु-शब्द से परे (मनसी) मन्नन्त और असन्त शब्द (उत्तरपदादिरुदात्त:) उत्तरपद आधुदात्त होते हैं (अलोमोषसी) लोमन् और उषस् शब्दों को छोड़कर। उदा०-(मन्) सुकर्मा । शोभन कर्मवाला। सुधर्मा । शोभन धर्मवाला। सुप्रथिमा । शोभन प्रसिद्धिवाला। (अस्) सुपयोः । शोभन पयस् (दूध/पानी) वाला। सुया: । शोभन यशवाला। सुस्रोता: । शोभन स्रोतवाला। सुनत् । अति अध:पतनवाला। सुध्वत् । अति अध:पतनवाला। सिद्धि-(१) सुकर्मा । यहां सु और कर्मन् शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से सु' शब्द से परे अन्नन्त कर्मन्’ उत्तरपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-सुधर्मा आदि। (२) सुत्रत् । यहां सु-उपसर्गपूर्वक स्रंसु ध्वंसु अध:पतने (दि०प०) धातु से क्विम् प्रत्यय करने पर सुत्रस्' शब्द सिद्ध होता है। वसुात्रुध्वंस्वनडुहां दः' (८।२।७२) से सकार को दकार और 'वाऽवसाने (८।४।५५) से दकार को तकार आदेश होता है। ऐसे ही-सुध्वत् । शेष कार्य पूर्ववत् है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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